राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)  

2000 के नोट चलने अथवा बंद करने के लिए देश से माफी अथवा नीतिगत त्रुटि को स्वीकारा नहीं जाना चाहिए?
              
      स्वच्छ मुद्रा नीति (क्लीन नोट पॉलिसी) के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ने कल शाम एक अधिसूचना जारी कर पूर्व में 10 नवम्बर 2016 को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 24(1) के अंतर्गत जारी किए गए रुपए 2000 के नोट को बाजार में संचालन से वापस लेने की घोषणा की साथ ही उसे तत्काल अवैध घोषित न करते हुए अर्थात 2000 मूल्य वर्ग के नोट की वैध मुद्रा (लीगल टेंडर) जारी रखते हुए 30 सितंबर के बाद उसके ट्रांजैक्शन को बाजार से प्रतिबंधित कर दिया है, जिसे आम भाषा में ‘‘नोटबंदी द्वितीय’’ कहा जा रहा है। यह विमुद्रीकरण क्या नोटबंदी है? जैसे कि 8.11.2016 का प्रधानमंत्री ने घोषणा कर की थी। वस्तुतः विमुद्रीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विमुद्रीकरण नोटों के किसी भी प्रकार के लेनदेन के लिए वैध मुद्रा के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जबकि ‘‘क्लीन नोट पालिस’’ में 4-5 साल के बाद नोट के खराब हो जाने के कारण उसे प्रचलन से बाहर कर दिया जाता है। इसे शब्दों के भ्रमजाल से धरातल पर वास्तविक स्थिति को बदला नहीं जा सकता है।
      अबकी बार नोटबंदी भाग दो की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा नहीं की गई, जैसा कि पिछली बार प्रधानमंत्री ने स्वयं मीडिया के माध्यम से देश को संबोधित करते हुए नोटबंदी की घोषणा की थी। आम जनता के लिए अचानक लेकिन आर्थिक क्षेत्रों के जानकार लोगों के लिए वर्ष 2016 में आई नोट बंदी की योजना के समय ही बाजार में नकदी उपलब्ध कराने की उद्देश्य से रू. 2000 के नोट छापने की नीति लागू की गई थी। तब ही यह स्पष्ट था कि धीरे-धीरे उद्देश्य पूरा होते इसे बंद कर दिया जाएगा। इसी नीति के तहत आरबीआई द्वारा 2018 से 2000 के नोट छापना बंद कर दिया गया था। इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए भारतीय रिजर्व बैंक की दृष्टि में रू. 2000 के अंकन का नोट जारी करने का उद्देश्य पूरा हो गया है। अंतिम कड़ी के रूप में उक्त अधिसूचना जारी हुई है। यद्यपि आरबीआई के सूत्रों के अनुसार बड़े नोटों को काले धन के रूप में इकट्ठा करने की जानकारी आने के बाद ही यह कदम उठाया गया है। आंकड़ों की नजर से भारतीय रिजर्व बैंक की इस नीति को  इस तरह से समझिए।
      8 नवंबर 2016 को देश में हुई नोटबंदी के समय चलन में मौजूद 15.50 लाख करोड़ बेकार हो गए, जो मार्केट में चलन कुल नगदी का 89 था। चूंकि बाजार की नगदी की आवश्यकता की आपूर्ति में छोटे नोट छापने में लंबा समय लग जाता, इसलिए 2000 के हाई डिनॉमिनेशन (मूल्य वर्ग) के नए नोट लाने की नीति अपनाई जा कर वर्ष 16-17 में 2000 रुपए के 6.30 लाख करोड़/370 करोड़ के नोट डाले गए। वर्ष 2016  में की गई नोट बंदी के बाद बाजार में नकदी घटने की उम्मीद थी, परंतु वह घटने के बजाय बढ़ गई। नोटबंदी के समय चलन में नकदी 17.7 लाख करोड़ थी, जो एक समय दोगुनी से ज्यादा होकर 36 लाख करोड़ तक हो गई। इस कारण से आरबीआई द्वारा 2000 के नोट छापने बंद किये जाने से 31 मार्च 2018 को इन नोटों की अधिकतम मात्रा 6.73 लाख करोड़ रुपए रह गई थी, जो बाजार में मुद्रा के कुल संचलन का 37.3 थी। यह पुनः घटकर 31 मार्च 2023 को घटकर मात्र 3.60 लाख करोड़ रह गई जो कुल मुद्रा संचालन का मात्र 10.8 है। इस प्रकार बाजार में आज लगभग 3.62 लाख करोड़ रूपये 2000 के नोट नगदी लगभग 1ही को हटाया गया है, जिसके लिए नए मूल्य के नोट छापने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अन्य मूल्यांक के नोट आवश्यकता के अनुरूप पर्याप्त संख्या में बाजार में उपलब्ध हैं। इस कारण से जनता को कोई असुविधा नहीं होगी। यह स्थिति का यह एक पक्ष आरबीआई व उसके पीछे खड़ी सरकार का है।
      अब सिक्के के दूसरे पहलु सरकार के दावे व ‘‘नोटबंदी भाग-1’’ के समय किए गए दावों व उनकी प्राप्ति (उपलब्धि) का परीक्षण कर ले तभी हम नोटबंदी भाग-2 के निर्णय पर सही निष्कर्ष पर पहंुच पायेगें। सरकार का यह कहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में बड़े नोटों का प्रचलन नहीं है। भारत भी वह अपना रहा हैं। ‘‘कालाधन’’ व ‘‘टेरर फंडिग’’ पर कैसे लगाम लगेगा। प्रश्न यह है कि फिर प्रथम बार नवम्बर 2016 में 2000 रू. के उच्च मूल्यांकन के नये नोट जारी ही क्यों किये गये? जब तब भी यह दूसरे देशों में नहीं था। रू. 500 व 1000 की नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के समय यह तर्क दिया था कि इसे काला धन को बढ़ावा मिलता है। तब उससे भी ज्यादा मूल्यांक रू. 2000 के नोट जारी करते समय क्या सरकार इस तथ्य से अवगत नहीं थी? क्या आरबीआई का रू. 2000 के नोट जारी करने के संबंध में दिया यह स्पष्टीकरण उचित व मान्य है कि बाजार में रूपये की तरलता के लिए छोटे नोटों के अवैध हो जाने से बची वैध नोटों की मुद्रा के बाजार की आवश्यकतानुसार जरूरत की पूर्ति में काफी समय छापने में लगेगा? इसलिए 2000 रू. के नये नोट छापने की नीति बनाई गई। फिर क्या एक ‘कमी’ की पूर्ति के लिए दूसरी ‘‘बड़ी गल्ती’’ कर कमी की पूर्ति कर उसे सुधारा जा सकता हैं? क्या काला धन एकत्रित करने के लिए 500-1000 के नोट से ज्यादा सुविधाजनक 2000 के नोट नहीं है? दूसरा आरबीआई ने जो स्थिति 2000 रू. के नोट के संबंध में अपने स्पष्टीकरण में बतलाई है, कमोबेश वही स्थिति 500 रू. के नोट के मामले में भी हैं। तब क्या 500 मूल्यांकन के नोट फिर से बंद किये जाने वाले है?
      एक दूसरी महत्वपूर्ण बात आरबीआई व सरकार, भाजपा का यह दावा है कि रू.2000 के नोट पिछली योजना के समान तुरंत (चार घंटे बाद) अमुद्रिक (अवैध) नहीं किये गये है, बल्कि वह आज भी एक वैध मुद्रा है जो 30 नवम्बर तक बाजार में प्रचलन में वैध रहेगीं। उक्त बात शब्दशः कागज पर बिल्कुल सही है, परन्तु व्यवहार में क्या 1 प्रतिशत भी सही है? 30 नवम्बर के बाद भी क्या वह वैध मुद्रा होकर प्रचलन में होगी? यदि नहीं तो यह वैध मुद्रा है इस दावे का यर्थात मतलब क्या है? जनता को सिर्फ गुमराह करना? जब एक नागरिक को यह मालूम हो गया है कि 2000 के नोट 1 अक्टूबर से कागज की रद्दी हो जायेगा, तब वह आज किसी भी से ट्रांजैक्शन में 2000 का नोट लेकर बैंक के चक्कर क्यों लगायेगा। भुगतान करने वाला तो कानूनन् जोर (दबाव) कर सकता है, परन्तु भुगतान प्राप्त करने वाला व्यवहारिक रूप से उसे हर हाल में अस्वीकार ही करेगा। याद कीजिए! जब कभी बीच-बीच में किसी भी नोट के अमुद्रीकरण की अफवाह फैलती या फैला दी जाती रही, तब जनता सतर्क होकर उन मूल्यांकन के नोटों को स्वीकार करने में हिचक करती रही है।
      ‘‘नकली नोटों’’ को बाजार से हटाने के लिए भी ‘‘विमुद्रीकरण’’ की नीति लाई जाती है जैसा कि पिछले नोटबंदी में प्रचलित समस्त 500 के नोट का विमुद्रीकरण कर 500 के नोटों की नई सीरीज जारी की गई थी। परन्तु क्या उससे नकली नोटों का छापना बंद हो गया? वर्ष 2016 की नोटबंदी से लेकर आज की गई स्वच्छ मुद्रा नीति के बीच कई बार 2000 व 500 के नकली नोट जब्त कियेे गये है। कर्नाटक चुनाव में भी 300 करोड़ से उपर के नोट जब्त किये गये थे। अतः इस योजना के एक उद्देश्य आगामी होने वाले विधानसभा व लोकसभा के चुनाव में कालेधन के उपयोग को रोकना ही हो सकता है। तथापि इसका प्रभाव सत्ताधारी की बजाए विपक्ष पर ज्यादा पड़ने की संभावनाएं है।
      वर्ष 1999 में लागू की गई स्वच्छ मुद्रा नीति (क्लीन नोट पॉलिसी) का एक कारण  4-5 साल बाजार में चले नोटों को खराब हो जाने से उन्हें बाजार से हटाना भी होता है। इसका उद्देश्य ग्राहकों अच्छी गुणवक्ता वाले करंसी नोट देना है। यदि इस कारण से भी 2000 के नोट वापस लिये जा रहे हो तो शेष मूल्यांक को वापिस लेने के लिए आरबीआई ने क्या कदम उठाये हैं? साथ ही इस नीति के तहत उसी मूल्यांकन के नये सीरीज के नोट जारी किये जाते हैं। क्या भविष्य में भी स्वच्छ मुद्रा नीति के तहत रू. 2000 के बाजार से वापिस लेने के बावजूद वैध होने के कारण भविष्य में पुनः नई सीरीज का 2000 के नोट जारी किये जायेगें।
      बार-बार इस तरह नोटबंदी किये जाने से सरकार, आरबीआई व बैंकों की साख पर भी उंगली उठती है। क्या बार-बार कुछ समय के अंतराल में की जा रही ऐसी कार्रवाईयो से  भारत जैसे देश में जहां ग्रामीण इलाकों इमें आज भी लगभग 45% जनता अशिक्षित है का सरकार व बैंक के प्रति विश्वास को कहीं न कहीं चोट व धक्का नहीं लगता है?