राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)

‘‘विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में ‘लोकतंत्र’ की लोकतांत्रिक तरीके से हत्या’’?
  
दिल्ली देश का एकमात्र प्रदेश है, जो राज्य होने के बावजूद भी उसे अन्य राज्यों के समान पूर्ण राज्य का दर्जा व अधिकार नहीं है? बावजूद इसके दिल्ली में जो कुछ भी घटित होता है, उसकी ‘तरंग’ देश भर में चली जाती है। केजरीवाल की ‘‘खांसी’’ से लेकर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की तथाकथित गिरफ्तारी व स्वास्थ्य मंत्री संत्येन्द्र जैन संबंधित सूचनाएं मीडिया में अन्य सूचनाओं की तुलना में भारी पड़ जाती रही हैं। यह बात केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद से हम देख रहे हंै। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद मात्र मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही मीडिया का सबसे बढ़िया प्रयोग/उपयोग/दुरूपयोग कर रहे हैं। इसीलिए दिल्ली में हो रही प्रत्येक घटनाएं चाहे वे राजनीतिक हो अथवा सामाजिक या अन्य कोई, देश की स्थिति पर उसका तुलनात्मक रूप से प्रभाव ज्यादा ही पड़ता है।
4 दिसम्बर को दिल्ली नगर निगम के हुए चुनाव को दो महीने से ज्यादा का समय व्यतीत हो गया है। तीन बार मेयर के चुनाव के लिए बैठक आहूत किये जाने के बावजूद दिल्ली राज्य चुनाव आयोग मेयर का चुनाव करने में असफल रही है। दिल्ली नगर निगम चुनाव परिणाम में 250 सदस्यीय नगर निगम में भाजपा की 104 सीटों तुलना में आप को 134 सीटों का स्पष्ट रूप से बहुमत प्राप्त होने के बावजूद मेयर का चुनाव न हो पाना क्या लोकतंत्र के खतरे की घंटी को नहीं दर्शाता है? यह लोकतंत्र के पक्षधर, भागीदार व उसे मजबूत बनाये रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति तथा ‘तंत्र’ के लिए एक बेहद चिंतनीय विषय होना चाहिए। क्योंकि यह तो एक प्रतीक है। कहीं ऐसा न हो कि एक दिन यह प्रतीक नगरनिगम से आगे बढ़कर विधानसभा व लोकसभा में भी बनने न लग जाए? तब शायद स्थिति को संभालना मुश्किल हो जायेगा।
भाजपा का यह आरोप हास्यास्पद नहीं है कि आप पार्टी चुनावी हार के ड़र से (स्पष्ट रूप से बहुमत प्राप्त होने के बावजूद) हुड़दंग लीला कर रही है और चुनाव नहीं होने दे रही है? अल्पमत में होने के बावजूद भाजपा सांसद हंसराज हंस व अन्य कई पार्टी पदाधिकारी यह दावा कर रहे है कि ‘‘मेयर भाजपा’’ का ही होगा। जबकि आप पार्टी भी यही आरोप भाजपा पर लगा रही है। मामला उच्चतम न्यायालय में भी गया। बावजूद इसके जनता ने उन्हें अपनी समस्याओं के हल के लिए जिन प्रतिनिधी को चुनकर भेजा है, उसने वह आस लगाई हुई है। परन्तु उसमें एक-एक दिन कम हो रहा और इस स्थिति के लिए कोई भी जिम्मेदार संस्था, तंत्र या उच्चतम न्यायालय सहित ध्यान नहीं दे रहा है? जब लोकतंत्र में चुने हुए व्यक्ति को सत्ता का स्थानांतरण आसानी से नहीं हो पा रहा है? निश्चित रूप से यह स्थिति लोकतंत्र के लिए गहन चिंता का विषय बन गया है। फौजी शासन या राजशाही से लोकतांत्रिक तंत्र को सत्ता के हस्तांतरण में आने वाली रुकावटों को तो समझा जा सकता है। परन्तु दिल्ली में यह स्थिति नहीं है। इससे यह समझा जा सकता है कि दिल्ली प्रदेश जो अपने आप में स्वतंत्र प्रदेश नहीं है, जहां राज्यपाल केन्द्र सरकार के प्रतिनिधी के रूप में आरूढ़, है जो संवैधानिक रूप से सत्ता का बहुत कुछ केन्द्र बिंदु है। वहां पर अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार के अधीन नगर निगम आगे कैसे स्थानीय प्रशासन चला पायेगा, यह एक बड़ा गंभीर विषय है।
देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है न ही ऐसा देखने को नहीं मिला जैसा अभी दिल्ली में घटित हो रहा है। यह जरूर हुआ है कि चुनाव जीतने वाली बहुमत वाली पार्टी को हारी वाली पार्टी तोड़कर यदा-कदा सत्ता की कुर्सी पर जरूर पहंुचने में सफल हुई है। परन्तु यह सब कुछ निर्वाचन तिथी के पूर्व ही तय हो जाता रहा था। परन्तु यहां पर तो तीन बार बैठक बुलाने के आवश्यक ‘तोड़फोड’़ न हो पाने के कारण निर्वाचन नहीं हो पाया। यदि आप के इस आरोप को मान लिया जाये कि भाजपा तोडफोड करने के लिए समय प्राप्ति के लिए किसी न किसी बहाने चुनाव आगे बढ़ाकर चुनावी प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में रूकावट पैदा कर रही है, इसका तो मतलब यही है कि दिल्ली नगर निगम में आप पार्टी में तोड़फोड़ होकर भाजपा का मेयर बनने की स्थिति में ही चुनाव हो पायेगा। यदि ऐसा होगा तो वह दिन लोकतंत्र में ‘काला दिन’ के रूप में ‘हत्यारा दिन’ दर्ज होगा। वर्तमान जारी विद्यमान स्थिति में दिल्ली में दिन प्रतिदिन लोकतंत्र की हत्या का क्रम कब तक चलता रहेगा व चलाया जायेगा? अंततः दिल्ली नगर निगम के मेयर के चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संवैधानिक लोकतंात्रिक रूप से नहीं हो पा रहे है, तो आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन, यह एक बड़ा प्रश्न है?
इस देश में किसी भी समस्या के हल के लिए, किसी भी आस्कमिक घटना, दुर्घटना, दंगा-फसाद, कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ जाने पर जांच आयोग की स्थापना एक सामान्य मांग हो गई है जो एसटीएफ से लेकर मजिस्ट्रेड न्यायिक जांच, जांच कमीशन आदि-आदि की होती रही है। क्या दिल्ली में मेयर के चुनाव तीन बार न होने की कोई जांच कराई जाएगी? निश्चित रूप से केन्द्रीय सरकार, दिल्ली सरकार गवर्नर व मुख्यमंत्री जांच नहीं करायेगें। तब उच्चतम न्यायालय को ही आगे आकर लोकतंत्र की हत्या करने की जांच के लिए अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करना ही होगा।