मोदी सरकार द्वारा जाति जनगणना कराने की अचानक मंजूरी दिए जाने से देश में नई बहस छिड़ गई है और सरकार और विपक्ष के बीच श्रेय लेने की जंग शुरू हो गई है। भाजपा समेत एनडीए के सहयोगी दल इस फैसले को ऐतिहासिक बता रहे हैं। उनका तर्क है कि इस जनगणना को कराने के पीछे का लक्ष्य हर समुदाय को आंकड़ों से सशक्त बनाना है। लक्षित विकास और सच्चे सामाजिक न्याय के लिए यह ऐतिहासिक कदम है। पिछले 11 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का मुख्य एजेंडा सामाजिक न्याय रहा है। कांग्रेस शुरू से ही जाति जनगणना और यहां तक ​​कि आरक्षण के पक्ष में नहीं रही है। वहीं, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी, राजद और भारत ब्लॉक में उसके सहयोगी दल इसे अपनी जीत बता रहे हैं और कह रहे हैं कि सरकार का फैसला उनके दबाव के कारण हुआ है। भारत ब्लॉक की पार्टियां अब आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से आगे ले जाने की मांग कर रही हैं।

भाजपा: 11 साल से चल रहा काम, अचानक नहीं

1 जाति जनगणना का फैसला अचानक नहीं लिया गया है, पिछले 11 साल से इस पर काम चल रहा है।

2 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वंचितों को उनका हक दिलाने की प्रतिबद्धता। इससे हर वर्ग को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य हासिल होगा।

3 राजनीतिक रूप से कुछ राज्यों के सर्वेक्षण से समाज में भ्रम की स्थिति पैदा हुई है, जिसे इससे दूर किया जाएगा।

4 सामाजिक न्याय हमेशा नीति का केंद्र रहा है, इसलिए ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया।

कांग्रेस: ​​राहुल के मिशन की जीत

1 राहुल गांधी के मिशन के कारण सरकार को जाति जनगणना की घोषणा करनी पड़ी।

2 भाजपा इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन जनगणना के लिए समय सीमा नहीं बताई।

2 जाति जनगणना तभी फायदेमंद होगी, जब 50 प्रतिशत आरक्षण की दीवार हटेगी।

3 दिसंबर 2019 में मोदी सरकार ने बताया था कि जनगणना पर 8,254 करोड़ रुपये खर्च हुए, फिर इस साल के बजट में 575 करोड़ रुपये ही क्यों?

अब अचानक वे 'अर्बन नक्सल' कैसे हो गए: जयराम रमेश

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि एक साल पहले प्रधानमंत्री मोदी टीवी इंटरव्यू में जाति जनगणना की बात करने वालों को अर्बन नक्सल कहते थे। रमेश ने सवाल उठाया कि क्या पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अचानक अर्बन नक्सल हो गए। अब भाजपा के सभी नेता, मंत्री और प्रवक्ता जाति जनगणना का जश्न धूमधाम से मना रहे हैं। कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की मांग की, लेकिन मोदी ने 11 साल तक इस पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी। जब मैं खुद मंत्री था, तब 2011 में ग्रामीण भारत में सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित जनगणना हुई थी, लेकिन उसके आंकड़े आज तक सामने नहीं आए। जब ​​हमने मांग की, तो हमारी और हमारे नेताओं की आलोचना की गई। जयराम ने कहा कि 1951 से हर 10 साल में होने वाली जनगणना में एससी-एसटी की आबादी तो गिनी जाती थी, लेकिन ओबीसी की आबादी सामने नहीं आती थी, जो अब कांग्रेस के दबाव में हो रही जनगणना में सामने आएगी। 

राहुल को सर्वे और जनगणना में फर्क नहीं पता- प्रधान

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि आजादी के बाद यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार ने जाति जनगणना को सैद्धांतिक मंजूरी दी है। 50 फीसदी आरक्षण की सीमा खत्म करने के सवाल पर प्रधान ने कहा कि राहुल गांधी की बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। उन्हें सर्वे और जनगणना में फर्क भी नहीं पता। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को नेहरू और राजीव गांधी के पत्र और बयानों को पढ़कर देश से माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नेहरू जी जाति आरक्षण के खिलाफ थे, जिसके चलते उन्होंने राज्यों को पत्र भी लिखा था। मंडल कमीशन लागू करने के समय भाजपा सरकार का हिस्सा थी। कांग्रेस ने इसे रोक दिया। मंडल कमीशन पर राजीव गांधी का क्या स्टैंड था, यह सभी जानते हैं। उन्होंने जाति जनगणना को कुछ दलों के लिए राजनीतिक एटीएम करार दिया। प्रधान ने कहा कि जब बिहार में जाति सर्वे हुआ था, तब भाजपा ने उसका समर्थन किया था।