देश के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें - संघप्रमुख : कृष्णमोहन झा

कृष्णमोहन झा (लेखक राजनैतिक विश्लेषक है)
देश के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें - संघप्रमुख : कृष्णमोहन झा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विगत दिनों उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की गोला तहसील में स्थित कबीर धाम परिसर में निर्मित होने जा रहे नवीन भवन के भूमि पूजन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।इस अवसर पर उन्होंने अपने उद्बोधन में कबीर की वाणी को सामाजिक चेतना की पुकार बताते हुए कहा कि उनका चिंतन आज के समाज को दिशा देने की क्षमता रखता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इसी चेतना को लेकर समाज में समरसता संतुलन और संस्कारों का संचार कर रहा है। संत कबीर की विचारधारा और संघ की कार्यशैली का संगम भारतीय आत्मा को और अधिक मजबूती देने की दिशा में प्रभावशाली प्रयास सिद्ध हो रहा है। इस भव्य समारोह में संघ प्रमुख की उपस्थिति को महत्वपूर्ण बताते हुए कबीर धाम के प्रमुख संत असंगदेव ने कहा कि " मैं मोहन भागवत के माता-पिता को नमन करता हूं जिन्होंने ऐसे संस्कारी पुत्र को जन्म दिया जो मातृभूमि , धरती माता, गौमाता , भारत माता और गुरु के प्रति श्रद्धा और सेवा भाव रखते हैं ।यही हमारी संस्कृति है। यह स्थान पहले से ही पवित्र था मगर अब सरसंघचालक मोहन भागवत के यहां आगमन से और मनभावन हो जाएगा।" संत असंगदेव ने कहा कि वही माता पुत्रवती है जिसका पुत्र लोकभावना से कार्य करता है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने भाषण में कहा कि हम एक राष्ट्र हैं , एक माता भारत माता के पुत्र हैं। भाषा, प्रांत, उपासना और रीति-रिवाज भले ही अलंग हों लेकिन हम एक हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि हमारा संविधान भी भावनात्मक एकता की बात करता है।यह भावना यही है कि विविधताओं के बावजूद हम एक हैं। भारतीय होने का मतलब केवल भारत में रहना नहीं बल्कि उन मूल्यों को जीना है जिनके लिए भारत विश्व में जाना जाता है। भागवत ने कहा कि बाहरी देशों में व्यक्ति को इकाई माना जाता है जबकि हमारे यहां परिवार ही इकाई है। समाज की व्यवस्था परिवार से ही चल रही है। मोहन भागवत ने कहा कि हमारे यहां देने वाले को माता कहा जाता है। गौ ,नदी हमें कुछ न कुछ देती हैं इसीलिए हम उन्हें माता कहते हैं। कृतज्ञता का यही भाव हमें देश के प्रति भी रखना चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए कि हम देश के लिए क्या कर सकते हैं। भागवत ने कहा कि यदि हम राष्ट्र के लिए कुछ कर रहे हैं तो यह मानना चाहिए कि इससे हमारे समाज और परिवार का भला भी होगा। भागवत ने कहा कि हमें आत्मशुद्धि से विश्व शुद्धि के मार्ग पर अग्रसर होना है। आत्मा की उपासना से हम स्वयं को शुद्ध कर सकते हैं। संघ प्रमुख ने इस बात को रेखांकित किया कि उपासना ऐसी हो जो सत्य तक पहुंचाए और जीवन ऐसा हो जिसमें भोग और स्वार्थ की दौड नहीं हो ।
संघ प्रमुख ने कहा कि पहले भारत को बाहर हेय दृष्टि से देखा जाता था लेकिन अब दुनिया हमारी ओर अपेक्षा भरी नजरों से देख रही है । सबको मालूम है कि भारत ही उन्हें रास्ता दिखा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज छोटी-छोटी नौकाओं में या पैदल यात्रा यात्रा कर दुनिया के कोने कोने में गये वहां उन्होंने सभ्यता, संस्कृति और ज्ञान का प्रसार किया लेकिन न किसी का देश जीता,न धर्म परिवर्तन कराया। हमने वहां आध्यात्मिकता देकर विविधता का सम्मान करना सिखाया। यही विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। संघ प्रमुख ने कहा ज्ञान, विज्ञान,गुण और अध्यात्म जैसे तत्व भारत की देन हैं । अब समय आ गया है जब भारत को देने वाला देश बने और एक बार फिर विश्व गुरु की प्रतिष्ठा अर्जित करें। मोहन भागवत ने कहा कि जब से सृष्टि बनी है तभी से मनुष्य सुख की खोज में है परन्तु सच्चा सुख आत्मा की शांति में है न कि भोग की लालसा में।उपभोग जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए सामाजिक कल्याण, सेवा और उत्तर दायित्व की भावना ही जीवन का होना चाहिए। संघ प्रमुख ने भाषण के अंत में परिवार,समाज और देश को एकता के सूत्र में बांधते हुए जन जन तक प्रेम का संदेश पहुंचाने का आह्वान किया।