मध्य प्रदेश में देश का पहला ‘‘हिंदू गांव’’ बागेश्वर धाम। पंडित धीरेंद्र शास्त्री

राजीव खंडेलवाल
लेखक, कर सलाहकार एवं पूर्व बैतूल सुधार न्यास अध्यक्ष
मध्य प्रदेश में देश का पहला ‘‘हिंदू गांव’’ बागेश्वर धाम। पंडित धीरेंद्र शास्त्री।
‘‘हिंदू राष्ट्र की मांग’’। कही सिर्फ ‘‘राजनीतिक शिगुफा’’ तो नहीं?’’
राजनीतिक क्षेत्र में शिवराज सिंह चौहान से लेकर मोहन यादव तक मध्य प्रदेश को ‘‘सबसे पहले सबसे आगे’’ कई क्षेत्रों में ‘‘ग्रीनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड’’ में दर्ज कराने की कड़ी को ‘‘तथाकथित धार्मिक क्षेत्र’’ में बाबा बागेश्वर राम ने ‘‘हिंदू गांव’’ बनाने की घोषणा कर आगे बढ़ाया है। हिन्दू राष्ट्र की लगातार मांग करने वाले बाबा, बागेश्वर धाम, मध्य प्रदेश के पीठाधीश, पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने ‘‘हिन्दू एकता यात्रा’’ के बाद बागेश्वर धाम (गढ़ा) में हिन्दू गांव की नींव रखते समय जो कथन किया है, उस पर गौर करने की आवश्यकता है। ‘‘कंठी टीका मधुरी बानी धारक’’ पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि ‘‘हिन्दू राष्ट्र का सपना हिन्दू घर से ही शुरू होता है। हिन्दू परिवार, हिन्दू समाज और हिन्दू ग्राम बनाने के बाद हिन्दू तहसील, हिन्दू जिला और हिन्दू राज्य बनेगा, तब कहीं जाकर हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना पूरी होगी। यह मकान लोग अपने जीवनकाल के लिए ले सकेंगे, उनका क्रय-विक्रय नहीं होगा’’। उनके इस बयान को दो दृष्टिकोण से देखना होगा। तभी आप वास्तविक स्थिति से रूबरू हो पायेगें।
‘‘सामान्य अर्थ तो सीधा सादा है। परंतु क्या वह अर्थशास्त्री का है?’’
एक दृष्टिकोण बिल्कुल सरल (सिंपल) है। एक जगह, ‘‘ग्राम’’ में लगभग 1000 तिमंजिला मकान बनाना, उस कालोनी का नाम ‘‘हिन्दू ग्राम’’ देना व उसे सिर्फ हिन्दूओं, (सनातन धर्म) मानने वालों को ही बसाना पूर्णतः एक वैधानिक कार्य होकर एक नागरिक का संवैधानिक अधिकार भी है। बाबा ने हिन्दू-सनातनी धर्म शब्द का उपयोग किया है। वैसे हिंदू धर्म और सनातनी धर्म जितना एक सा दिखता है, उतना है नहीं। इसमें कुछ बारीक अंतर है, जिस पर फिर कभी चर्चा करेंगे। जमीन बागेश्वर धाम समिति ने उपलब्ध कराई है। इस परियोजना पर आपत्ति करने के बजाए उनकी पीठ थपथपानी चाहिए। हालांकि बाबा आत्ममुग्धता की स्थिति में ‘‘खु़द ही नाचे, खुद ही निछावर करे और खुद ही बलैयां ले’’ की भूमिका में हैं। उक्त ग्राम में निर्माण की धनराशि मकान लेने वालों से ली जाएगी जो 15 लाख से 17 लाख तक होगी। प्रोजेक्ट दो साल में पूरा होगा। महत्वपूर्ण बात हिन्दू गांव मकान में रहने वालो की जीवन शैली ‘‘वैदिक संस्कृति’’ पर आधारित होगी।
‘‘पंडित शास्त्री को ‘‘हिंदू राष्ट्र’’ को परिभाषित करना होगा?’’
पंडित धीरेंद्र शास्त्री हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को धरातल पर उतारने के तारतम्य में ‘‘राष्ट्र’’ के गठन के लिए जोड़ने वाली प्राथमिक ‘‘ग्राम इकाई’’ से लेकर ‘‘राज्य स्तर’’ की ईकाई के अनुसार ही हिंदू राज्य, हिंदू जिला, हिंदू तहसील, हिंदू ग्राम, हिंदू समाज, और हिंदू परिवार को ‘‘कट्टर हिन्दू’’ बनाना चाहते हैं। तकनीकी रूप से उक्त योजना के लिए उक्त क्रमबद्ध कदम तो सही है। परन्तु ‘‘कंह कुंभज कहँ सिंधु अपारा’’! बाबा बागेश्वर धाम को पहले यह बतलाना होगा कि उनके ‘‘हिन्दू राष्ट्र’’ में कट्टर हिन्दू बनाने से लेकर हिन्दू ग्राम बनाने के बाद अगले क्रम में मेरे जैसे एक हिन्दू को और क्या करना होगा, और कौन-कौन सी आहुतियां उनके विचारों के हिन्दू राष्ट्र बनाने के महायज्ञ में देनी होगी? क्योंकि मैं ‘‘जन जन भीतर राम जी, ज्यों चकमक में आग’’ की उक्ति का अनुसरण करने वाले एक ‘‘हिन्दू’’ के नाते स्वयं को उस हिन्दू राष्ट्र का रहवासी व नागरिक मानता हूं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘‘सर्वधर्म, समभाव’’ की भावना संवैधानिक रूप से और वास्तविक धरातल पर ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ के मूल मंत्र के साथ मौजूद है।
संयुक्त हिन्दू परिवार की आवश्यकता।
हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक कट्टर हिंदू परिवार के निर्माण की बात करने वाले बाबा बागेश्वर यह बताने का कष्ट करेंगे कि इस ‘‘कट्टरता’’ में क्या हिंदू समाज की रीड की हड्डी ‘‘संयुक्त हिंदू परिवार’’ जो हमारी संस्कृति की जीवन शैली की पहचान व व्यवस्था थी, जो आज बिखर सी गई है, ‘‘शामिल है, अथवा नहीं’’? इसेे बिखरने से रोकने के लिए और उसे पुनः जोड़ने के लिए कौन सा अभियान बाबा ने कभी चलाया हैं? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार धर्मांतरण द्वारा परिवर्तित हिंदुओं की ‘‘धर्म वापसी’’ का कार्यक्रम करते हैं। इसके लिए क्या उन्होंने अपनी कथा वाचन में कभी एक शब्द भी कहा है?
अनावश्यक बयान।
पंडित धीरेंद्र शास्त्री का उक्त बयान न केवल अनावश्यक बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द को भंग करने वाला ‘‘उत्प्रेरक कथन’’ है। यह संविधान में दी गई बोलने की स्वतंत्रता के मूल अधिकार तथा अनुच्छेद 19 (5) पर भी अतिक्रमण करता है। क्योंकि कोई भी मूल अधिकार पूर्ण (एब्सोल्यूट) नहीं है। उक्त बयान पर कांग्रेस व भाजपा की प्रतिक्रिया भी बेहद निराशाजनक है, जो सिर्फ राजनीति से प्रेरित होकर आरोप-प्रत्यारोप तक ही सीमित है। राष्ट्रहित की बात तो निरंक है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण आपको मिल जाएंगे, जब किसी व्यक्ति को कम समय में अपनी क्षमता से ज्यादा सफलता मिल जाती है, तो वह घमंडी होकर सिर चढ़के बोलने लगता है। उल-जलूल बयान देकर वह यह मानकर चलता है, कि उसकी हर बात को उसको चाहने वाले आंख मूंद कर स्वीकार कर लेंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं है। बाबा की पहल का समर्थन करते हुए भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने ‘‘रामराज्य की अवधारणा’’ को एक तरफ करते हुए जिस ‘‘हिन्दू गांव’’ की कल्पना की है, जिसमें छेड़खानी, कब्जा न हो, गोमान्स का सम्मान हो आदि आदि, ऐसा तो एक भी गांव मेरे हिन्दूस्तान में 77 साल की स्वाधीनता के बाद भी अस्तित्व में नहीं है। इसमें लगभग 28 वर्ष के भाजपा शासन काल भी शामिल है।
‘‘क्या बाबा का हिंदू राष्ट्र भागवत जी की हिंदू राष्ट्र की अवधारणा से अलग है?’’
बाबा अपने हिन्दू राष्ट्र, की अवधारणा को ‘‘पढ़े-लिखे धर्मभीरू हिन्दू’’ व ‘‘अनपढ़ धर्म प्रेमी हिन्दू’’ पर थोपने के पूर्व माननीय मोहन भागवत जी के गाजियाबाद में एक किताब के विमोचन के अवसर पर दिये गये कथन को सुन ले, पढ़ ले। ‘‘यह सिद्ध हो चुका है कि हम पिछले चालीस हजार साल से एक पूर्वजों के हैं। सभी भारतीयों का डीएनए एक है, भले ही वे किसी भी धर्म के क्यों न हो। इसमें हिंदू मुस्लिम के एकजुट होने जैसी कोई बात नहीं है। ‘‘सभी लोग पहले से ही साथ हैं’’। सरदार वल्लभभाई पटेल ने फरवरी 1949 में यह कहा था ‘‘हिंदू राज पागलपन भरा विचार है’’। यद्यपि सरदार पटेल ने ‘‘हिंदू राष्ट्र’’ की बजाय ‘‘हिंदू राज’’ शब्द का उपयोग किया था। परन्तु वर्ष 1950 में अपने एक उद्बोधन में यह कहकर कि भारत एक ‘‘धर्म निरपेक्ष राज्य’’ है, भारत न तो हिंदू देश बन सकता है और न ही हिंदू धर्म भारत सरकार का धर्म बन सकता है, स्थिति स्पष्ट कर दी थी।
‘‘क्या योगी का 80-20 का कथन संख्यात्मक रूप से सही है?’’
यह लेख लिखते समय न्यूज 24 का कार्यक्रम ‘‘माहौल क्या है’’ कार्यक्रम देख रहा था, जो बाबू जगजीवन राम की 117वीं जयंती के अवसर पर आरा (बिहार) में अनुसूचित जनजाति के जेडीयू के कुछ व्यक्तियों से ‘‘वक्फ बिल’’ को लेकर बात कर रहे थे। तब एंकर राजीव रंजन के पूछने पर कि मंदिर जाते हो? कुंभ गये? राम मंदिर गये? आगे जाओगे? लगभग सभी ने इससे इंकार किया। न तो गये थे, न जायेगें। जब अनुसुचित जनजाति के ये व्यक्ति जो ‘‘हिन्दू’’ है, हिन्दू धर्म के प्रतीक के प्रति आस्था व्यक्त नहीं कर रहे, तब फिर क्या धीरेन्द्र शास्त्री ऐसे हिन्दूओं को मुख्य धारा में जोड़ने का अभियान चलाएंगे? इस देश में जब भी हिन्दू मुस्लिम की बात होती है, तब हिन्दू धर्म के स्वयंभू रक्षक लोग 80-20 की बात करने लग जाते हैं। निश्चित रूप से लगभग 20 प्रतिशत से कुछ कम मुसलमान तो है ही। परन्तु क्या 80 प्रतिशत हिन्दू हैं, यह बड़ा प्रश्न यह है? इसका एक उपयुक्त उदाहरण मैंने आपको दिया। बुद्ध, सिख, जैन और बहुत सी जगह आदिवासी अपने को ‘‘हिंदू’’ नहीं मानते हैं। यद्यपि हिंदू विवाह वैधता अधिनियम 1949 में की धारा 2 में सिख, जैन को हिंदू में शामिल किया है। तब भी हम क्या 80 प्रतिशत है? यदि आप वास्तव में बाबा की नजर का हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तब भी आपको 20 प्रतिशत मुस्लिम एवं अन्य धर्मावलंबियों को छोड़कर, शेष समस्त व्यक्तियों को ‘‘सनातनी हिंदू’’ बनाना होगा? बडा प्रश्न यह है कि क्या बाबा इसके लिए तैयार हैं? अथवा क्या बाबा राजनीतिक रोटियां सेंकने के प्रयास में अस्थायी रूप से अपनी टीआरपी बढाना चाहते हैं? हिन्दू समाज के इस तरह के संत कथा वाचको ने ही हिन्दू समाज का बड़ा बेड़ागर्क किया है। हिन्दू समाज के बीच विभिन्न वर्गो के बीच ‘‘समरसता’’ पैदा करने का कोई प्रयास ये संत नहीं कर रहे हैं, जो उनका पहला दायित्व है। यदि हिन्दू समाज में ‘‘समरसता’’ होगी, तो निश्चित रूप से देश ‘‘हिन्दू राष्ट्र’’ ही होगा। क्योंकि उस समरसता के भाव में सिर्फ हिन्दू ही एक नहीं होगा, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक के बीच समरसता का भाव होगा, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति अथवा सम्प्रदाय का क्यों न हो।