राज्यों का विभाजन? क्या अखंड भारत की परिकल्पना के विरुद्ध नहीं?

राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)
राज्यों का विभाजन? क्या अखंड भारत की परिकल्पना के विरुद्ध नहीं?
‘‘राज्यों का विभाजन’’ क्या 562 देशी रियासतों के एकीकरण से मेल खाता है।
राज्यों के निर्माण का इतिहास।
‘‘विभाजन’’ शायद अपने आप में खतरे की घंटी है जो अखंड, एकता, सौहादृपूर्ण वातावरण के विरूद्ध है। 15 अगस्त 1947 को जब भारत देश स्वतंत्र हुआ था, तब कुल 17 राज्य व ४ केंद्र शासित प्रदेश थे। वर्ष 1953 में भाषायी आधार पर पुनर्गठित करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना न्यायाधीश फजल अली की अध्यक्षता में की गई। तब उनकी सिफारिश पर 14 राज्य व 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए थे। जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा घटाकर केन्द्र शासित प्रदेश कर देने से कुल 28 प्रदेश और 8 केंद्र शासित प्रदेश देश में हो गए हैं। लेकिन इसके बाद राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु नए राज्यों की मांग स्वीकार की गई, चाहे सरकार कोई भी रही हो। बावजूद इसके दिन प्रतिदिन देश के विभिन्न अंचलों से राज्यों के विभाजन की मांग की जाकर नए राज्यों की मांग की जा रही है। प्रश्न यह है क्या राज्यों की आकार, क्षेत्रफल, जनसंख्या, भाषा, संस्कृति व प्रशासनिक सहूलियत और आर्थिक संरचना व आय को लेकर क्या कोई एक सर्वमान्य फार्मूला तय किया गया है जिसके आधार पर नए राज्यों की मांग पर विचार किया जा सके? अभी तक ऐसा कोई भी एक व्यापक सिद्धांत या फार्मूला तय करना तो दूर उसे पर सोचा भी नहीं गया है। तब प्रश्न फिर यह उत्पन्न होता है कि नए राज्य के निर्माण में राजनीतिक सोच व दबाव से हटकर वे कौन से कारक, तत्व होने चाहिए जो नये राज्य के निर्माण की मांग को उचित ठहरा सकते हैं। मेरे मत में इस पर देशव्यापी बहस की जाने की आवश्यकता है और किसी न किसी सर्वमान्य नहीं तो एक अधिकतम मान्य निष्कर्ष पर पहुंच जाना चाहिए। अन्यथा वर्तमान में इस देश के ‘‘राजनीतिक स्वार्थ’’ देश के हितों से इतने ज्यादा बलशाही हो गए हैं कि शायद एक दिन ऐसा न आ जाए कि जब प्रत्येक जिला अपने को प्रदेश ही न समझने लग जाए या उसकी मांग न करने लग जाए?
भारत देश का कुल क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें से 120849 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन व पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। वर्तमान में कुल जनसंख्या लगभग 143 करोड़ से ज्यादा है। स्वतंत्रता के समय कुल जनसंख्या लगभग 34 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश था और क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य मध्य प्रदेश था। मध्य प्रदेश का एक जिला बस्तर केरल राज्य से भी बड़ा है। ‘‘उत्तर प्रदेश’’ ब्रिटेन देश के बराबर है। जनसंख्या में विश्व के पांचवे स्थान पर पाकिस्तान से भी ज्यादा जनसंख्या वाला प्रदेश है। विपरीत इसके गोवा और उत्तर पूर्वी के राज्य छोटे अत्यंत छोटे बने। ऐसा नहीं है कि बड़े आकार के कारण राज्यों का विभाजन किया गया हो। अन्यथा उत्तर पूर्व में पहले नागालैंड से असम फिर असम छोटा राज्य होने के बावजूद उसका विभाजन कर मिजोरम की स्थापना की गई।
विभाजन के पक्ष-विपक्ष में तर्क-वितर्क।
राज्यों के विभाजन के पक्ष में तर्क-वितर्क दोनों है। ठीक उसी प्रकार जैसा गिलास आधा खाली है या भरा। परंतु आज हम जब विभाजित हुए राज्यों की स्थिति को देखते हैं और उनके तथा नागरिकों के विकास की तुलना अविभाजित राज्यों के समय की करते हैं, तो निश्चित रूप से हमें अधिकतर जगह निराशा ही हाथ लगती है। साथ ही यह देश की इंटीग्रिटी को भी कहीं न कहीं कमजोर कर रहा है।
छोटे राज्यों के खिलाफ में जो सबसे बड़ी बात कही जाती है, जो सही भी है कि ‘‘अनुउत्पादक खर्चो’’ में बढ़ोतरी होती है। मतलब ‘‘दोहरा प्रशासनिक व्यय’’। राजनीतिक व्यय वह भी अनुउत्पादक व्यय ही होता है, में भी काफी बढ़ोतरी हो जाती है। राज्यों की विभाजन के समय जो सबसे बड़ी समस्या या गलती होती है, वह राज्य के संसाधनों का जनसंख्या के अनुपात में विभाजन नहीं हो पता है। परिणाम स्वरूप एक राज्य को बड़ा फायदा मिलता है तो दूसरा राज्य को नुकसान में होता है। मध्य प्रदेश का विभाजन होकर बना नया छत्तीसगढ़ राज्य एक उदाहरण है। छोटे राज्य होने से प्रशासनिक व शासन की धुरी जनता के ज्यादा निकट होकर जीवंत होती है। इसके जवाब में आज के आधुनिक संचार के व आवागमन के युग में सर्किट न्यायालय, आपकी सरकार, आपके द्वार, नीति के तहत सीधे नागरिकों के पास पहुंच सकती है। प्रश्न सिर्फ इच्छाशक्ति की है।
जब राज्य के किसी भाग के निवासियों की अपनी अस्मिता, संस्कृति, भेदभाव, आर्थिक आधार आदि मांगो के आधार पर नए राज्य की मांग की जाती है, तब वहां पर राष्ट्रीय भावना का ‘‘छरण’’ होता है और एक उसमें छिपा हुआ ड़र व खतरा जो अभी सामने नहीं दिख रहा है, वह यह भी है कि वह अस्मिता की भावना प्रदेश से आगे जाकर कहीं नए देश की मांग में तो नहीं परिवर्तित हो जाएगी?
किसी का एक सुझाव था कि छोटे राज्यों की बजाए जिलों को छोटा कर देना चाहिएस वह भी न तो सार्थक है न हीं अपने उद्देश्यों में सफल होगा स इससे जिला स्तर पर भी प्रशासनिक व्यय कई गुना बढ़ जाएगा।
यह लेख लिखने का तात्कालिक कारण एक सक्षम व पूर्व सेवा लिये कमिशन रहे आएस अधिकारी द्वारा मध्य प्रदेश राज्य को 4-5 भाग मंे बांटने के सुझाव के उत्तर में लिखा गया है।