राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार) 

बिना तथ्य और साक्ष्य के ‘‘मुद्दा’’ बनाकर ‘‘अर्थहीन’’ बहस में धन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण समय ‘‘बेकार’’ करने की क्या हमारी ‘‘प्रवृत्ति व नियति’’ बन गई है?
क्या देश की राजनीति में ‘‘देश हित’’ पर ‘‘सिर्फ’’ अंतरराष्ट्रीय मामलों को लेकर ही सहमति बन सकती है?(बांग्लादेश)


पुनः ‘‘महत्वपूर्ण समय का अपव्यय ही अपव्यय ’’।

गत दिवस ही मैंने देश के ‘अमूल्य’ समय के ‘अपव्यय’ के बाबत कांवड़ यात्रा में नेम प्लेट को लेकर दो भागों में लिखे लेख के माध्यम से लंबी चर्चा की थी। परंतु दुर्भाग्य वश ऐसा लगता है कि देश में बुद्धि का ‘‘अकाल  होकर’’ वह ‘‘काल के गाल’’ में चली गई है। तभी तो बदकिस्मत, विनेश फोगाट की अयोग्यता को लेकर आरोपों (तथाकथित) की पोटली बनाकर देशव्यापी चर्चा में व्यस्त हो कर पुनः समय की बर्बादी की जा रही है। आखिर यह कब और कहां जाकर रुकेगी? वाकई ‘‘खलक का हलक बंद करना’’ बहुत ही मुश्किल है।

‘‘असंभव को संभव’’ कर ‘‘अयोग्य’’ होकर भी फोगाट ने देश का नाम ‘‘ऊंचा’’ कर स्वयं को  ‘‘योग्य’’ सिद्ध किया। 

ताजा मामला कई अवॉर्डों से सुशोभित तथा ‘‘खेल पुरस्कार व अर्जुन पुरस्कार’’ से सम्मानित देश की प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय पहलवान विनेश फोगाट का है। पेरिस में चल रहे ओलंपिक में वर्ष 2010 से लगातार 95 अंतरराष्ट्रीय मुकाबले जीत चुकी 4 बार की विश्व कुश्ती चैंपियन तथा पिछले ओलंपिक विजेता जापान की अपराजित ‘‘युई सुसाकी’’ को 50 किलो वजन वर्ग की कुश्ती में प्री क्वार्टर फाइनल में हराकर इतिहास रच कर गोल्ड मेडल चूकने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत देश का नाम गौरवान्वित कर ‘‘ऊंचा’’ किया। ‘‘ग्रहण तो चांद को भी लगता है’’ सो यह आईने सामान स्पष्ट है कि देश की हीरोइन ‘‘आईकॉन’’ बन चुकी विनेश फोगाट के 50 किलोग्राम की श्रेणी में 100 ग्राम वजन ज्यादा रह जाने के कारण कुश्ती के ओलंपिक नियमों के तहत उन्हें ‘‘अयोग्य’’ घोषित कर दिया गया, जिस कारण से वे गोल्ड-सिल्वर मेडल के लिए फाइनल में ‘‘मैट’’ पर उतर नहीं सकी। लेकिन ‘‘एक स्वर में कह रहा है सारा देश, तुम हारी नहीं विनेश’’। इस प्रकार ‘‘जो जीता वही सिकंदर’’ मिथक को विनेश ने झुठला दिया। ‘‘जीत’’ ही नहीं ‘‘हार’’ भी ‘‘जीत’’ कहलाती है, इसीलिए तो ‘‘हार’’ गले में ड़ाली जाती है। 

कुश्ती से ‘‘संन्यास’’ की घोषणा। गहरा ‘‘अवसाद’’ तो कारण नहीं?

‘‘गोल्ड मेडल’’ जो किसी भी खिलाड़ी के जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न होता है, के निकटतम लगभग पहुँच जाने के बावजूद, अयोग्य घोषित होने के चलते लगभग आई सफलता हाथ से फिसल जाती है, तब उस खिलाड़ी की मानसिक स्थिति की कल्पना करना किसी अन्य व्यक्ति के लिए लगभग असंभव सी हो जाती है। सच कहा है, ‘‘घाव से बड़ी घाव की टीस होती है’’। तब ऐसे खिलाड़ी के टूटे हुए मनोबल (जमीन पर लेटी हुई उसकी फोटो को देखिये) को ऊंचा उठानें के लिए ‘‘दवाई’’ के रूप में सांत्वना के कुछ अच्छे शब्दों की आवश्यकता की बेहद जरूरत होती है, जैसा कि प्रधानमंत्री ने अयोग्य घोषित होने के तुरंत बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘‘एक्स’’ पर किया ‘‘आप चैंपियन में चौंपियन है। आप भारत का गौरव हैं। ‘‘मैं जानता हूं कि आप दृढ़ता का प्रतीक हैं। चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना हमेशा से आपका स्वभाव रहा है।’’ मजबूत होकर वापसी आइये। इससे अच्छा उत्साह वर्धन करने वाला कोई शब्द-लाइन हो ही नहीं सकती। यद्यपि विनेश की जीत पर प्रधानमंत्री का ट्वीट न आना या फोन पर बातचीत न करना जैसे अन्य खिलाड़ियों के साथ किया पर प्रधानमंत्री की आलोचना के शिकार भी बने। जो कहीं न कहीं उनकी प्रांरभिक हिचक को भी दर्शता है। 140 करोड़ जनता के दिलों से भी यही आवाज निकली क्योंकि ‘‘कीर्ति के गढ़ कभी नहीं ढहते’’। अवसाद की स्थिति के चलते ही शायद फोगाट ने संन्यास की घोषणा कर दी, जो पुनः देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होकर एक आघात है।

तथ्यहीन, आधारहीन आरोप?

परंतु दुर्भाग्य मेरे देश का, एक वर्ग को, कुछ राजनीतिक पार्टियों और सोशल मीडिया को इसमें ‘‘षडयंत्र की बू’’ नजर आ रही है, जिस पर देश में फिर अनावश्यक बहस चलवाकर महत्वपूर्ण समय को ‘‘फालतू’’ बना दिया जा रहा है। प्रथम आरोपों की बात कर ले;प्रमुख पत्रकार अशोक वानखेडे ने उनके खाने में एंटी कार्नजिक दवाई दी गई जिसके कारण ‘‘वर्क आउट’’ के बाद भी पसीना जिससे वजन कम होता है, नहीं निकलता है। ऐसा आधारहीन आरोप लगाया है। भारतीय कुश्ती संघ व ओलंपिक संघ की नीयत पर सवाल उठाने जा रहा है। भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष संजय सिंह ने भी सपोर्ट स्टाफ की भूमिका पर उंगली उठाते हुए जांच की मांग की है। आप सांसद संजय सिंह का बयान कि यह विनेश का नहीं देश का अपमान है भारत सरकार हस्तक्षेप करे और बात न मानी जाए तो ओंलपिक का बहिष्कार करे। पूर्व सांसद डॉ. एस टी हसन के कथनानुसार यदि पूरे बाल कटवा दिए जाते तो 200 ग्राम वजन कम हो जाता? डॉ. एस टी हसन को यह जान लेना चाहिए कि न केवल उनके कुछ बाल काटे गये बल्कि नाखून भी काटे गए थे तथा कपड़े भी छोटे किए गए जैसा भारतीय दल के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ दिनशॉ पारदीवाला ने बतलाया। लेकिन पूरे बाल कटवाने के बावजूद भी 100 ग्राम वजन कम नहीं होता, ऐसा कथन दूसरी महिला खिलाड़ी ने किया है। षडयंत्र का आरोप लगाने वाले शायद इस बात को भूल गए हैं या भूलने का नाटक कर रहे हैं कि स्वयं खिलाड़ी विनेश फोगाट से लेकर उनके कोच, ट्रेनर, न्यूट्रिशनिस्ट फिजियोथेरेपिस्ट, डॉक्टर, अटेंडेंट किसी भी सपोर्टिंग स्टाफ ने इस तरह का कोई आरोप नही लगाया, बल्कि ऐसे तथाकथित आरोपो से इनकार ही किया है। विनेश की बहन बबीता व ताऊ महावीर सिंह जो स्वयं कोच होकर ही विनेश को खेल में आगे बढ़ाया, ने भी किसी तरह के षडयंत्र से इनकार किया है। तब इसे विशुद्ध निम्न स्तर की राजनीति ही नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? जहाँ तक कोच और सपोर्टिंग स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाने का प्रश्न और जांच की बात है, स्वयं खिलाड़ी फोगाट ने ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया है। फिर भी यदि इस संबंध में भारतीय ओलंपिक संघ या सरकार कोई जांच करती है, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। खेल मंत्री मनसुख मंडाविया का विनेश फोगाट करने के संबंध में दिया गया बयान बेहद ही शर्मनाक व खेद जनक है। जब वे यह जानकारी देते है कि पेरिस ओलंपिक चक्र के लिए उन्हें सपोर्टिंग स्टाफ के साथ 7045775 रू. की वित्तीय सहायता दी जिसका वर्ष 2021 से अभी तक का एक-एक विवरण देते है। क्या यह किसी ने पूछा था? क्या खेल मंत्री इसके साथ यह भी बतलाने का कष्ट करेंगे कि उनके घर की बिजली, टेलीफोन रिनोवेशन आदि पर कितना खर्चा इस अवधि में किया गया? क्या वित्तीय सहायता देने से सरकार की जिम्मेदारी इतीश्री मान ली जाती है? सांसद कंगना रनौत का बयान भी तंज कसने वाला है।

नियम से ऊपर कोई नहीं।  

बात सिर्फ 100 ग्राम वजन के बढ़ने की नहीं है। किसी भी खेल में जहां वजन के अनुसार विभिन्न श्रेणी में वर्गीकृत की जाती है, वहां यदि किसी भी श्रेणी में निर्धारित सीमा से एक ग्राम भी वजन बढ़ता है, तो उस खिलाड़ी को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। क्योंकि ओलंपिक या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियमों का बहुत ही कड़ाई से पालन होता है। इसीलिए खिलाड़ी वजन मशीन साथ में लेकर चलते हैं। भार की योग्यता के संबंध में यह वस्तु स्थिति है। तथापि विनेश ने खेल पंचाट न्यायालय (सीएएस) में अपील दायर की है, जो सुनवाई हेतु स्वीकार कर ली गई है, जिसमें उन्हें सिल्वर मेडल मिलने की पूर्ण संभावना है। इसलिए भी क्योंकि सेमीफाइनल जीतने के बाद रजत पदक की वैद्य अधिकारी हो गई थी यदि वे किसी कारण से मान लीजिए स्वास्थ्य कारण से फाइनल में नहीं उतरती तो उनका सेमीफाइनल में जीतती है तो रजत पदक कदापि नहीं हो सकता था। 140 सदस्यीय सपोर्ट स्टाफ के साथ भारतीय टीम के साथ 117 खिलाड़ी जिनमे कुश्ती के छः खिलाड़ी भी शामिल है, पेरिस गए हैं। विनेश फोगाट के साथ उनके कोच, ट्रेनर, डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट, न्यूट्रिशनिस्ट, डाइटिशियन (पोषण विशेषज्ञ), अटेंडेंट अर्थात समस्त सपोर्ट स्टाफ था, जिनकी पूरी निगरानी में फोगाट ने न केवल आहार (डाईट) ली, बल्कि निर्देशानुसार 2600 ग्राम तक वजन भी कम किया। मात्र 100 ग्राम प्रयास के बावजूद भी कम नहीं हो पाया। उल्लेखनीय बात यह है कि ओलंपिक महाकुंभ में विनेश फोगाट के पास यह विशेष सुविधा थी कि सपोर्ट स्टाफ उनके साथ ही रहता था, जबकि अन्य खिलाड़ियों का सपोर्ट स्टाफ दूसरी जगह रहता था। इस प्रकार विनेश 24 घंटे सपोर्ट स्टाफ की निगरानी में थी। 

100 ग्राम से अंदर- बाहर। 

आईये इस बढ़े हुए 100 ग्राम वजन की कुछ चीर-फाड़ कर सही तथ्यों को समझने का प्रयास करते हैं। कुश्ती खेल के खिलाड़ियों के लिए यह सामान्य सी बात है कि उन्हें अपना वजन सामान्य से कम करके ही खेलना होता है। इसके लिए वे लगातार खेल के पहले व खेल के बाद चुनी गई श्रेणी में बने रहने के लिए कम वजन करते है। पिछले टोक्यो ओलंपिक में विनेश 53 किलोग्राम भार वर्ग में खेली थी, परन्तु असफल हो गई। 58 किलोग्राम वर्ग में अंतिम पंचाल के कांस्य पदक जीतने पर उनका पेरिस ओलंपिक में इसी वर्ग भार में खेलना संदिग्ध हो गया था। उनका सामान्य वजन 55 किलो से ऊपर होता है। रियो ओलंपिक में 48 किलोग्राम वर्ग में खेली थी। जहां 400 ग्राम वजन अधिक होने के कारण वह मुख्य स्पर्द्धा में जगह बनाने से चूक गई। वे फिर 50 किलोग्राम के वर्ग में चली गई। वजन कम करने का मतलब कदापि यह नहीं है कि आप जब भी चाहे जितना चाहे समस्त प्रयासों से आप की इच्छा अनुसार वजन कम करने के प्रयासों को आपका शरीर भी उतना ही ‘‘परिकलित प्रतिक्रिया’’ (कैलकुलेटर रिस्पांस) दे। जो लोग मात्र 100 ग्राम कहकर आलोचना कर रहे हैं, वे शायद इस स्थिति को भूल गए हैं। फोगाट ने अपना सामान्य वजन 53 किलो से कम कर प्रतियोगिता प्रारंभ होने के पूर्व उसका वजन 49.900 था। फिर एक ही दिन में तीन बाइट लड़ने के बाद 1.50 किलो खाना लिया जो अगले दिन की बाइट के लिए एनर्जी के लिए आवश्यक हो जाता है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। शरीर में 7 से 12 किलो पानी सामान्यतः होता है जिस कारण भी वजन कम किया गया है। लेकिन डिहाईटेशन की स्थिति में भी हो जाती है जैसा कि 2015 में चीन के बाक्सर के की हो गई थी। भोजन के बाद शाम को 50.700 ग्राम वजन 2.800 किलोग्राम (50.700-49.900) बढ़ गया। उक्त बढ़े वजन को कम करने के लिए 12 घंटे का समय पर्याप्त नहीं था। कुछ घंटों का समय और होता तो आज यह नहीं कहना पड़ता कि ‘‘ख़ता लम्हों की थी, सजा सदियों ने पाई’’। इसीलिए पूरी रात्रि ‘‘वर्क आउट’’ एक्सरसाइज, सोना बाथ, स्किपिंग, साइकलिंग, जॉगिंग करने व खुन निकालने के बावजूद मात्र 100 ग्राम वजन ज्यादा रह गया, जो बहुत ही भारी पड़ गया।

अन्य कोई विकल्प नहीं रह गया था? 

तथापि विनेश यदि कम खाना लेकर भार को सीमा के भीतर रख कर प्रतियोगिता में भाग लेने का विकल्प चुनती तो शायद उन्हें गोल्ड पदक से ही संतोष करना पड़ता। क्योंकि तब शायद एनर्जी कम होने के कारण शारीरिक शक्ति कम होती। शायद यही कारण रहा होगा किसी भी खिलाड़ी के लिए जब वह अपने लक्ष्य के इतने निकट पहुंच कर उसे प्राप्त करने के लिए वह अपना सब कुछ स्वाहा कर दांव पर लगा कर लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करता है। अतः इसे सिर्फ विनेश फोगाट का ही नहीं, बल्कि देश का दुर्भाग्य भी माना जाना चाहिए। ‘‘कालस्य कुटिला गतिरू’’! निश्चित रूप से भाग्य उनके साथ नहीं था।