राजस्थान के करौली में मंदिरों की शृंखला, पर्वतीय वनक्षेत्र और बाघ की दहाड़
करौली। राजस्थान का नाम जहन में आते ही रेगिस्तानी इलाका, ऐतिहासिक किले जहन में आने लगते हैं, लेकिन ग्वालियर-चंबल से सटा राजस्थान का करौली शहर है। लाल पत्थरों से बसे करौली-कैलादेवी के आसपास कई धार्मिक व रमणीय क्षेत्र हैं, जो सनातन धर्म के शाश्वत दर्शन कराते हैं, हमारे देश की कई धरोहर, प्राकृतिक व ऐतिहासिक विरासत को न सिर्फ संजोए हुए हैं, बल्कि हर आने वाली नई पीढ़ी तक पहुंच रहे हैं।
यहां हरे-भरे पहाड़ हैं, घने जंगल व अभयारण्य में शेरों की दहाड़ से लेकर कई वन्य प्राणियों की मौजूदगी, कल-कल बहती नदियां हैं और प्रकृति के इन मनोहारी नजारों के बीच दिव्य, भव्य और आकर्षक मंदिरों की श्रृंखला है।
11 वीं सदी में हुआ था मंदिर का निर्माण
काली सिंध नदी के किनारे, त्रिकुट पर्वत पर स्थित देश के नौ शक्तिपीठों में शामिल कैलादेवी चामुण्डा माता का मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में हुआ और समय के साथ यह विकसित होता गया। यहां काली सिंध नदी का पानी देखने में काला लगता है, लेकिन बोतल या गिलास में भरते ही यह स्वच्छ दिखता है। इस मंदिर का प्रबंधन आज भी करौली का राजपरिवार देखता है।
करौली शहर की पहचान है सदियों पुराना मदनमोहनजी का मंदिर
कैलादेवी से करीब 20 किलोमीटर दूर चंबल नदी किनारे करनपुर गांव में बिजासन माता का मंदिर है, जिन्हें चामुण्डा माता की बहन माना जाता है, यहां पहुंचने के लिए पहाड़ी व जंगली क्षेत्र में बनी सड़कें यात्रा का आनंद बढ़ा देती हैं। कैलादेवी से 22 किलोमीटर दूर करौली शहर जिला मुख्यालय है, जहां लगभग 300 मंदिर हैं, लेकिन लाल पत्थर से नक्काशीदार कला से बना सदियों पुराना मदनमोहनजी का मंदिर करौली शहर की पहचान है, जहां राधा-कृष्ण जी मंदिर के तीन गर्भगृह कतार में हैं, तीनों में भगवान कृष्ण व राधा अलग-अलग स्वरूपों में विराजे हैं।
करौली चामुण्डा माता को चना, हलवा, पूड़ी का भोग लगता है तो मदनमोहनजी को दाल, कढ़ी, चावल, पकवानों के साथ देसी घी में बने बूंदी के लड्डुओं का भोग लगता है, मंदिर परिसर में ही श्रद्धालुओं के लिए यह लड्डू उपलब्ध रहते हैं।
हर माह की अष्टमी को जुटते हैं लाखों श्रद्धालु
करौली, कैलादेवी में हर रोज हजारों श्रद्धालु व पर्यटक पहुंचते हैं, जबकि हर माह की अष्टमी के तिथि पर कैलादेवी के दरबार में लाखों लोग आते हैं। इस धार्मिक स्थल पर आस्था का ज्वार चैत्र व शारदीय नवरात्र में उमड़ता है, जब मंदिर के गर्भगृह द्वार से लेकर पहाड़ी के नीचे बस स्टैण्ड तक लाखों श्रद्धालुओं की कतार लगती है, तब पूरा करौली नवरात्र के उत्सव में नहाया होता है। नवरात्र के नौ दिन दूर-दूर से यात्री पदयात्रा कर आते हैं।
कई दार्शनिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थान हैं करौली में
- जंगल, पहाड़, नदी और वन्यजीव प्रेमियों के लिए कैलादेवी वन्यजीव अभयारण्य है, जो सवाई माधौपुर जिले तक लगभग 375 वर्ग किलोमीटर में फैला है। 1983 में बने इस अभयारण्य में बाघों (टाइगर) की अच्छी खासी मौजूदगी है, इसका एक छोर चंबल नदी किनारे से सटा है।
- कैलादेवी चामुण्डा माता मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर केदारगिरी गुफा है, मान्यता है कि संत केदारगिरी ने सबसे पहले इसी घने जंगल की गुफा में माता का मंदिर बनवाया था, पथरीले पहाड़ों पर दूर-दूर तक पानी की समस्या है, लेकिन गुफा में बने इस मंदिर के गोमुख से 12 महीने जलधारा बहती है। बारिश में यह मंदिर जलमग्न हो जाता है।
- करौली जिला मुख्यालय से 69 किमी दूर हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे मेहंदीपुर बालाजी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भूत, प्रेत, बुरी आत्माओं से परेशान लोग दर्शनों के लिए ले जाए जाते हैं।
- करौली से 130 किमी दूर भरतपुर में पक्षी अभयारण्य है, जिसे नेशनल पार्क का दर्जा मिला है। यहां 300 से ज्यादा प्रजाति के पक्षियों के कलरव सुनाई देती है। सर्दी का सीजन शुरू होते ही चीन, तुर्की, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के पक्षी इस अभयारण्य की सुंदरता को बढ़ा देते हैं। करीब 40 साल पहले इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थलों में शामिल किया है। इसके अलावा भरतपुर में ही लक्ष्मण मंदिर, डींग महल और मगरमच्छ की पीठ पर सवार माता गंगा का मंदिर है दर्शनीय व रमणीय स्थलों में हैं।
- करौली जिले के हिण्डौन ब्लॉक में जैन अतिशय क्षेत्र चंदनपुर महावीरजी मंदिर है, संगमरमर व बलुआ पत्थर से बने इस भव्य मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में हुआ, यहां दिगंबर जैन संप्रदाय के पांच मंदिर हैं। इसके अलावा शांतिनाथ जिनालय, भगवान पाश्वनाथ जिनालय और कमल मंदिर भी देखते ही मन मोह लेते हैं। इस मंदिर से 10 मिनट की दूरी पर रेलवे स्टेशन है, जो महावीरजी के नाम से ही है।
- करौली से 40 किमी दूर 10वीं शताब्दी में बना तिमनगढ़ का भव्य किला है। जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर चंबल की सुंदर घाटियों के बीच उत्गीर किला व देवगिरी किले हैं, यह किले यदुवंशी राजाओं की राजधानी रहे हैं, इससे इनकी भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है।
- करौली शहर में ही राजा गोपाल सिंह द्वारा बनवाया गया सिटी पैलेस महल है। 18वीं सदी में लाल व सफेद पत्थर के मेल से बने इस महल की नक्काशीदार बनावट, गुंबद, भित्ति चित्रकला देखने लायक है। सिटी पैलेस देखने पर राजस्थान के रजवाड़ों के रहन-सहन को आसानी से समझा जा सकता है।
किस मौसम में जाएं?
सर्दी और बारिश के मौसम में यहां भरपूर हरियाली, हरे-भरे ऊंचे पहाड़ और कल-कल बहती नदियां दिखती हैं। कैलादेवी मंदिर पर माह की अष्टमी या फिर चैत्र या शारदीय नवरात्र में जाएं।
ऐसे जा सकते हैं करौली
- करौली पहुंचने के लिए मप्र, राजस्थान, उप्र से कई नेशनल हाईवे व स्टेट हाईवे जुड़े हुए हैं।
- रेल मार्ग के लिए करौली के पास हिण्डौन कस्बे में रेलवे स्टेशन हैं, जहां दिल्ली, आगरा, मथुरा से लेकर देश के कई शहरों से ट्रेन नेटवर्क जुड़ा है।
- हवाई यात्रा के लिए सबसे नजदीक जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा जो 150 किमी दूर है। इसके अलावा ग्वालियर का हवाई अड्डा है, जहां से करौली लगभग 170 किमी दूर है।