राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार) 

‘‘कांग्रेस के घोषणा पत्र की कापी पेस्ट’’। राहुल गांधी! फिर बजट की ‘‘आलोचना’’ क्यों?

आलोचना या प्रशंसा?

हमारे देश में पक्ष व विपक्ष के बीच खाई इतनी गहरी हो गई है कि परस्पर एक दूसरे की आलोचना करते समय प्रायः वे तथ्यों से परे हो जाते हैं। कई बार तो आलोचना करने में वे इतने मशगूल हो जाते हैं कि जाने-अनजाने में आलोचना न होकर समालोचना या प्रशंसा हो जाती है। राहुल गांधी की बजट पर प्रतिक्रिया व उसके बाद कांग्रेस की मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया सुनेत का कथन इसी श्रेणी में आता है। राहुल गांधी ने अपनी बजट प्रक्रिया में तीन मुख्य बातें कहीं हैं। पहला यह ‘‘कुर्सी बचाओ बजट है’’, जो बिल्कुल सही है। लेकिन कृपया वे यह बतलाने का कष्ट करें कि 77 साल की स्वाधीनता की अवधि में किस वर्ष का, किस सरकार का बजट ‘‘कुर्सी बचाओ’’ बजट के बजाय ‘‘कुर्सी गिराओ’’ या ‘‘कुर्सी खोने’’ वाला बजट रहा है? दूसरा कथन सहयोगियों को खुश करने की कोशिश में सहयोगियों से सरकार ने अन्य राज्यों की कीमत पर ‘‘खोखले वादे’’ किए हैं। यह तथ्यों के बिल्कुल विपरीत हैं। क्योंकि सरकार ने आंध्र प्रदेश के लिए विशेष पैकेज 15000 करोड़ रू. का व बिहार के लिए 26000 करोड़ रु. का प्रावधान किया है, जिससे दोनों राज्य सरकारें संतुष्ट हैं। अतः यह खोखला वादा कैसे हो सकता है? तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कथन इस बजट को कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र और पिछले बजट की नकल करार दिया है। प्रतिक्रिया के आखिरी के उक्त दो कथन राहुल गांधी की बुद्धि पर प्रश्न वाचक चिन्ह लगाते हैं। 

राहुल गांधी की मंदबुद्धि?

‘‘कांग्रेस के घोषणा पत्र की ‘‘कापी पेस्ट’’ है’’, यह बात समझ से परे है। राहुल गांधी का यह कथन आलोचना है अथवा प्रशंसा? आखिर राहुल गांधी कहना क्या चाहते है? जब वे आलोचना करते हुए कहते है कि एनडीए सरकार का यह बजट कांग्रेस के घोषणापत्र का ‘‘कॉपी पेस्ट’’ है, तो उसका अर्थ यही निकलता है कि कांग्रेस के घोषणा पत्र को रूबरू भाजपा ने अपने बजट में अपना लिया है। तब तो इस बात के लिए राहुल गांधी को भाजपा की प्रशंसा करनी चाहिए। यदि यह वास्तव में  आलोचना है तो, उसका मतलब तो यह निकलता है कि भाजपा ने कांग्रेस का घोषणा पत्र जो गलत है, को अपना लिया है। इसलिए राहुल गांधी ने आलोचना की है। 

सिक्के के दो पहलू।

हर सिक्के के दो पहलू के समान बजट के भी दो पहलू हैं। कुछ विशेषताएं तो कुछ कमियां! बजट का दोनों आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से आकलन किया जाना आवश्यक है। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के समस्त लोगों की हर खाहिशें की पूर्ति कोई एक बजट नहीं कर सकता है। हाँ उस दिशा में जरूर आगे बढा जा सकता है। यदि हम आर्थिक दृष्टि से बजट की आकलन करे तो, इसका सबसे बडा बैरोमीटर (पेरामीटर) बजट के तंुरत बाद आई शेयर मार्केट की प्रतिक्रिया है, जो बजट पेश करने के पूर्व 220 अंक से भी ज्यादा बढ़ा हुआ खुलकर बजट प्रस्तुत होने पर 1200 अंक से ज्यादा सूचकांक गिर गया। मतलब आर्थिक दृष्टि से बजट ठीक नहीं रहा। शायद इसका एक कारण दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ पर कर की दर 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.50 व अल्पकालीन पूंजीगत लाभ (एसटीटी) पर 15 से 20 प्रतिशत कर देना भी हो सकता है। एलटीटी की दर में भी बढोत्री की गई है। 

बैसाखी देने वाले साथियों को साधा गया।

राजनीतिक दृष्टि से एनडीए के दोनों साथियों जेडीयू एवं तेलगुदेशम को साधने में सरकार सफल रही है, जिनकी बैसाखी पर सरकार खडी है। इस आधार पर कांग्रेस की आलोचना नितांत गलत है। क्योंकि उसने भी यूपीए के समय अपने साथियों की इच्छाओं की पूर्ति की थी। 

विशेषताएं 

निश्चित रूप से हर बार के बजट के समान इस बार के बाजार की भी अपनी कुछ विशेषताएं व अच्छाईयां है, जिनका स्वागत किया जाना चाहिये। मुद्रा-स्फ्रिति की दर 3.1 प्रतिशत तक सीमित रखी गई। रोजगार के मुद्दे पर पिछला चुनाव लड़ा गया था, जिस पर ज्यादा ध्यान केन्द्रीत कर शिक्षा व रोजगार पर 1.48 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया। मुद्रा ऋण की सीमा 10 लाख से बढाकर 20 लाख करना, नये युवा रोजगार के लिए 7.5 लाख की नई स्कीम तथा 3 प्रतिशत की दर से छात्रों को ऋण देना। ये सब रोजगार को संबोधित करने वाले प्रावधान हैं। 80 करोड़ लोगों को दी जाने वाली मुफत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को अगले पांच वर्ष के लिए और बढ़ा दिया है। 

आयकर संबंधी छुट।

चूंकि में आयकर वकील हूं, इसलिए इस दृष्टि से यदि मैं इस बजट को एक लाइन में कहूं कि ‘‘ यह डिफॉल्टर का सहयोगी व डिपॉजिटरस का असहयोगी है,’’ तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। क्योंकि धारा 80 सी (चेप्पटर 6) के अंतर्गत निवेश की सीमा रू. 1.5 लाख से नहीं बढाई गई, जो सालो पूर्व से बनी हुई है। क्या सरकार बचत को प्रोत्साहन नहीं देना चाहती है? मानक कटौती 50 हजार से बढ़ाकर 75 हजार कर दी गई। टीडीएस की त्रुटि के लिए धारा 276 बी के अभियोजन के प्रावधान को समाप्त किया गया। दूसरा कराधान की दो टैक्स स्कीम है। पहली स्कीम में कोई बदलाव नहीं किया गया है। जब सरकार खुद यह कहती है कि नई कर व्यवस्था को दो तिहायियों से ज्यादा लोगों ने अपनाया है, तब सरकार पुरानी का राजधानी स्कीम को समाप्त क्यों नहीं कर देती हैै? विभिन्न आय वर्गो के स्लेप में जो छूट आयकर की दरों में दी गई, वह स्वागत योग्य है। एक और महत्वपूर्ण संशोधन किया गया जो अपवंचित आय के लिए लिमिटेशन 10 साल की थी, को घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया व उसकी न्यूनतम सीमा भी 50 लाख रू. कर दी है। विवाद से विश्वास स्कीम योजना 2024 फिर से लाई जा रही है। स्टार्टअप के लिए एंजल टैक्स एक्ट कर दिया है। संक्षिप्त में जिस प्रकार भोजन के स्वाद में नमक-मिर्च, खट्टा-मिट्ठा होने से जायका अच्छा होता है वैसे ही इस बजट का टेस्ट भी है। अतः इसका संपूर्णतः इस बजट का स्वागत किया जाना चाहिए।