राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार) 

अपराध रहित व भ्रष्टाचार विहिन विधायिका का आह्वान करने वाले अरविंद केजरीवाल खुद ही भ्रष्टाचार के आरोप में अंततः गिरफ्त में आ गए।
‘‘ईमानदार राजनीति’’ के परसेप्शन पर ‘‘भ्रष्टाचार का तड़का’’।

    याद कीजिए! अप्रैल 2011 में दिल्ली के जंतर मंतर पर ‘‘जन लोकपाल विधेयक’’ के लिए महाराष्ट्र के रालेगांव सिद्धि निवासी, समाजसेवी गांधीवादी बाबूराव हजारे जो अन्ना हजारे के नाम से जाने जाते हैं, का ‘‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन ग्रुप’’ के बैनर तले भ्रष्टाचार के विरुद्ध, गैर राजनैतिक, अहिंसा वादी आंदोलन लगभग चार महीने सफलतापूर्वक चला। इस आंदोलन को एक तरफ परदे के पीछे संघ प्रचारक एवं भारतीय जनता पार्टी के पूर्व महासचिव रहे चिंतक गोविंदाचार्य चला रहे थे, तो दूसरी ओर पर्दे पर ‘‘मैग्सेसे पुरस्कार’’ विजेता भारतीय राजस्व सेवा से इस्तीफा देकर आए नौकरशाह संयुक्त आयकर आयुक्त रहे अरविंद केजरीवाल चला रहे थे। आंदोलन के दौरान दिन प्रतिदिन अरविंद केजरीवाल मंच से दहाड़ मार कर बोलते थकते नहीं थे कि यह जो संसद है वह दागी है, क्योंकि उसमें 150 से ज्यादा सांसद दागी हैं, जिन पर भ्रष्टाचार और अपराधों के गंभीर आरोप है। असली संसद तो सामने खड़े लोग (जनता) हैं। अरविंद केजरीवाल की यह मांग रही थी कि जिन भी सांसदों पर अपराधिक अपराध और भ्रष्टाचार के प्रकरण चल रहे हैं, वे सब पहले संसद से इस्तीफा देकर न्यायालय में मुकदमा लड़ कर बाईज्जत बरी होकर आये। फिर जनता के बीच जाकर चुनाव लड़कर चुनकर संसद में आएं। यही सही स्वच्छ संसदीय लोकतंत्र होगा।
    याद कीजिए! जब अन्ना आंदोलन के प्रमुख कर्ता धर्ता अरविंद केजरीवाल ने संसदीय लोकतंत्र को अपराध व भ्रष्टाचार से मुक्त करने के उक्त मुद्दे को लेकर भ्रष्टाचार मुक्त और अपराधी/आरोपी विहीन संसद और विधानसभा की कल्पना को लेकर एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की बात कही, तब केजरीवाल के आंदोलनकारी गुरु भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के मुख्य चेहरा अन्ना हजारे ने राजनीतिक पार्टी बनाने से साफ इनकार कर दिया था। शायद अन्ना ने जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार विरोधी संपूर्ण क्रांति के आंदोलन से सीख ली, जहां जेपी ने नई राजनीतिक पार्टी जनता पार्टी बनाई तो जरूर, परंतु स्वयं उनने सत्ता में भागीदारी नहीं की। 
    अन्ना शायद इस बात को अच्छी तरह से समझ चुके थे कि जयप्रकाश नारायण की बनाई नई राजनीतिक पार्टी जनता पार्टी का कुछ ही समय में सत्ता के लिए लड़ाई के चलते क्या ह्रास हुआ? अतः अन्ना ने सत्ता में भागीदारी की जेपी की अनिच्छा एक कदम और आगे बढ़ाते हुए जेपी समान नई राजनीतिक पार्टी बनाने से साफ इनकार कर दिया। शायद इसलिए कि यदि उक्त मुद्दों को लेकर नई राजनीतिक पार्टी बनाई जाएगी तो सत्ता की अंतर्निहित इच्छा लिए नई राजनीतिक पार्टी को तंत्र फेवीकॉल समान मजबूत सत्ता तत्व इस बुरी तरह से जकड़ कर वह उसे अपने वर्तमान स्वरूप के ढांचे (भ्रष्टाचारी) में ही समाहित कर नई पार्टी को भी अपने अनुरूप ढाल लेगा। तब फिर तंत्र को बदलने के लिए नई राजनीतिक पार्टी बनाने वाला नेतागण भी अंततः स्वयं उनके गिरफ्त में आ ही जाएंगे, जिसका परिणाम आज ‘‘खुल्ला खेल फरक्काबादी’’ का नारा लगाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की भ्रष्टाचार के आरोप में हुई गिरफ्तारी के रूप में देखने को मिल रहा है। लबो लुआब यह कि ‘‘कडवी बेल की तूमड़ी उससे भी कड़वी होय’’।
    अरविंद केजरीवाल के समर्थक आम पार्टी के कार्यकर्ता गण यह जरूर कह सकते हैं कि ‘‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’’ का नारा देने वाले निश्चित रूप से स्वयं तो नहीं खा रहे हैं, परन्तु आगे का कथन न खाने दूंगा को जरूर अनर्थ अथवा अर्थहीन कर दिया है। क्योंकि समस्त दागी, भ्रष्टाचारी नेताओं जिन पर उक्त नारा देने वालो ने स्वयं भ्रष्टाचार के आरोप लगाए फिर उन्हें गले भी लगा लिया। वह भी शायद इसलिए जरूरी हो गया है, क्योंकि एक दूसरा नारा भी दिया गया था, ‘‘सबका साथ, सबका विकास सबका प्रयास’’। सबके साथ में भ्रष्टाचारी भी तो शामिल है, जिसकी भागीदारी इस कारण से शायद आवश्यक हो गई है। सरकार पर यह आरोप भी लगता है कि ईडी की यह कार्रवाई का समय निश्चित रूप से ‘‘राजनीति’’ से प्रेरित है। 
    पुनः याद कीजिए! इस देश में जब-जब भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन हुए वे सफल होकर तत्कालीन सत्ता को बदलने में तो सफल जरूर हुए, परंतु सत्ता के तंत्र को बदल नहीं पाए, सिर्फ मुखौटा ही बदला गया। विपरीत इसके भ्रष्टाचार का मजबूत तंत्र जिसे हम लोकतंत्र का नाम देते हैं ने, पारस पत्थर बनकर अधिकांश आंदोलनकारी नेताओं को अंततः स्वयं भ्रष्टाचारी बना दिया जो भ्रष्टाचार समाप्त करने नये राष्ट्र के निर्माण में निकले थे। गुजरात के युवाओं का भ्रष्टाचार के विरुद्ध नवनिर्माण आंदोलन से प्रारंभ हुआ आंदोलन बिहार में पहुंचकर जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आंदोलन में परिवर्तित हो गया। इस कारण ही आपातकाल लगा और अंततः आपातकाल हटने के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी। परंतु सत्ता के भ्रष्ट तंत्र को जयप्रकाश नारायण के सिपहसालार परिवर्तित नहीं कर पाए और कहते हैं ना कि ‘‘कचरे से कचरा बढ़े’’ तो, संपूर्ण क्रांति के आंदोलन की पैदाइश लालू यादव से लेकर देवीलाल जैसे अनेक नेता भ्रष्टाचार में गले की कंठ तक डूब गए। इसी प्रकार विश्वनाथ प्रताप सिंह का भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन सफल होकर वे स्वयं प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जरूर आरूढ़ होकर सत्तारूढ़ हो गये। परंतु वह भी सिर्फ सरकार के चेहरा बदलने तक ही सीमित रहा, तंत्र बदलने में वे भी पूर्णतः असफल रहे। 
    केजरीवाल का सार्वजनिक/राजनीतिक जीवन प्रांरभ से ही दोहरा चरित्र व झूठ का आवरण ओढ़े हुए गुजरते समय के साथ विवादित भी रहा है। तथापि शासकीय सेवाकार्य उज्जवल रहा है। मात्र आरोपी हो जाने के आधार पर दागी सांसदों से इस्तीफा मांग कर राजनीति की शुरुआत करने वाले केजरीवाल की स्वयं की पार्टी के अधिकांश विधायक व मंत्रियों पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके हैं (62 में से 35 विधायकों पर)। बल्कि कुछ तो जेल के अंदर काफी समय से है। बावजूद इसके किसी भी दागी/आरोपी द्वारा विधायक द्वारा न तो इस्तीफा दिया गया और न ही मंत्रियों के बर्खास्त करने का काम केजरीवाल ने किया। वे स्वयं देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बन गये जिन्हें मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया है। इसके पूर्व तीन मामलों में मुख्यमंत्रियों ने गिरफ्तार होने के पूर्व पद से इस्तीफा दे दिया था।
    केजरीवाल को अपनी गलती सुधारते हुए ‘‘नैतिकता का सम्मान’’ करते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी गिरती छवि को सुधारने के अवसर को जाने नहीं देना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि केजरीवाल एक पढ़े लिखे राजनीति की नई ईबारत लिखने वाले एक सफल राजनेता ऐसे बन गये कि इतने कम समय में जो राजनैतिक उंचाईयां व सफलता प्राप्त की ऐसी  कोई मिसाल हाल में ही देखने को नहीं मिली। दबंग व्यक्तित्व के धनी दृढ़ता से अपने से उंचे हिमालय पर बैटे नेताओं को तर्क से जवाब देकर सामना करनी की हिम्मत आज कल कम ही नेताओं में दिखती है। इसीलिए आज उन्हें इस बात पर जरूर अंतर्मन से विचार करना चाहिए कि इंडिया अग्रेस्ट करप्शन मंच के पुराने साथी बाबा रामदेव, किरण बेदी, कुमार विश्वास, स्वामी अग्निवेश, प्रशांत भूषण, राजेन्द्र सिंह, पीवी राजगोपाल, आशुतोष, योगेन्द्र यादव आदि एक-एक करके छोड़कर चले गये। इंडिया अगेंस्ट करप्शन का झंडा उठाकर उक्त आंदोलन से उपजी ‘‘आम आदमी पार्टी’’ के शीर्ष चार नेताओं की भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार होकर जेल में अभी तक रहने से इसे गिरती राजनीति की नैतिकता का निम्नतम स्तर ही माना जायेगा।
    इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि यदि राजनीति से भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करना है, तो आपको राजनीति से दूर रहकर ही तंत्र को बदलना होगा और यह तभी बदल पाएगा जब तंत्र का जनतंत्र का एक-एक जन इस दिशा में देश को नई दिशा देने के लिए बिना किसी राजनीतिक प्लेटफार्म के कुछ करने के लिए तत्पर होकर कार्य करने के लिए खड़ा हो जाएगा।