राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार) 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर चल रहे अमृत महोत्सव की कड़ी में अंबेडकर जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री संग्रहालय का उद्घाटन कर देश को एक नई भेंट भव्य ‘‘प्रधानमंत्री संग्रहालय’’ और प्रस्तुती दी जिसमें स्वतंत्र भारत के अभी तक के समस्त पूर्व प्रधानमंत्रियों के बारे में सकारात्मक जानकारी दी गई है। वैसे तो नरेन्द्र मोदी कुछ न कुछ नया सकारात्मक और साहसिक निर्णय लेने के लिए न केवल जाने जाते है, बल्कि कार्य रूप में परिणित कर अपने को उक्त दिशा में सही भी सिद्ध करते आ रहे है। परन्तु नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री संग्रहालय निर्माण का निर्णय वास्तव में एक बिल्कुल नई सोच व एक नया माड़ल की कल्पना है, जिसे सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी की ही ठोस कल्पना कही जा सकती है। वैसे तो नरेन्द्र मोदी सबका साथ के सिंद्धान्त पर विश्वास व कार्य करते है। परन्तु यहां पर उनकी सोच स्वयं की एकात्मक सोच है। और इस नई लेकिन सकारात्मक अकल्पनीय कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए निश्चित रूप से प्रधानमंत्री बधाई के पात्र है। 
    वैसे तो नरेन्द्र मोदी के भाषण प्रायः अपने विरोधियों पर तीक्ष्ण तंज के साथ तीव्र आक्रमण लिये और अपनी सरकार का अगले 10-20 सालों का एजेंडा लिये होते है। परन्तु इस लोकार्पण के अवसर पर उनका जो भाषण रहा वह निश्चित रूप से राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत और अवसर व परिस्थितियों की नजाकत को देखते हुये प्रधानमंत्री संग्रहालय के उद्घाटन भावना के अनुरूप ही रहा है। जो उनके विरोधियों को निश्चित रूप से कुछ न कुछ आश्चर्यचकित भी कर सकता है। आज के भाषण में प्रधानमंत्री ने देश के विकास में व देश की वर्तमान स्थिति के लिये समस्त पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को खुले दिल से स्वीकारा व उन्हे प्रेरणादायक भी बतलाया। यह उन्हे सम्मान देते हुये विकास को साक्षा विरासत भी बतलाया उनका यह रूप व उदार दिल शायद पहली देखने को मिला। अभी तक तो प्रधानमंत्री और भाजपा द्वारा 65-70 साल के कांग्रेस व विपक्ष शासन को देश की बदहाली के लिए पानी पी-पी कर कोसती ही रही है। चुनाव हो या अन्य कोई अवसर कांग्रेस के आलोचना के कोई अवसर को भाजपा ने ही छोड़ा है। परन्तु आज निश्चित रूप से प्रधानमंत्री ने परिपक्वता दिखाते हुये उनके योगदान को स्वीकारा। यही सही राष्ट्रीय भावना है। इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि हर सरकार व पार्टी का अपना स्वयं का भी एजेंडा होता है। देश के विकास का भी ऐजंडा होता है। प्रत्येक सरकारें देश हित में कुछ न कुछ कार्य अवश्य करते भी है। परन्तु संपूर्ण वादें व दावे न तो पूर्ण होते है न ही संभव है। लेकिन जब भी सरकारों की तुलना की जाती है तो आम जनता के हितों के लिए में जो ज्यादा कार्य करता है वही सफल राजनैतिक पार्टी कहलाती है। आज की असहमती व अविश्वास भरे वातावरण में प्रधानमंत्री की इतिहास के प्रति यह स्वीकृति निश्चित रूप से देश को आगे ले जाने वाली सिद्ध होगी, जैसा कि उन्होंने स्वयं इसे भविष्य की आशा व्यक्त की है। 
    प्रधानमंत्री का यह मा़ड़ल क्या राज्य सरकारें भी अपनायेगी, यह भी एक दिलचस्प विषय होगा? क्या प्रदेशों में मुख्यमंत्री भी अपने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों के संग्रहालय बनायेगें? इसके लिए भी इंतजार करना होगा। लेकिन यह योजना राज्य में तभी सफल हो पायेगीं जिस प्रकार प्रधानमंत्री ने अपना दिल बडाकर विरोधियों के योगदान को स्वीकारा है और उनकी कमियों को किसी भी रूप में इस अवसर पर ‘‘संग्रहालय’’ में नहीं उभारा है। एकाधिक अवसर (शायद आपातकाल) को छोड़कर देश में लोकतंत्र मजबूत होते जा रहा है यह मोदी की विरोधियों की भूल को शांति पूर्वक पूर्वक व्यक्त करने अदभूत शैली है। इसे अपनाया जाना चाहिए तभी राज्य का मुख्यमंत्री संग्रहालय भी केन्द्र के प्रधानमंत्री संग्रहालय के समान सफल हो पायेगा।  प्रश्न यह है कि ये भावनाएं राज्य सरकारें कितना अपना पायेगी? तभी तों संग्रहालय बनाने का उद्देश्य सफल हो पायेगा?