नई दिल्ली । सियासी गलियारों में विपक्षी दलों के एक साथ आने की चर्चाओं के बीच कई बडे़ नेता एक साथ मंच पर नजर आए। विपक्ष के बड़े नेताओं को एक तस्वीर में लाने में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने बड़ी भूमिका निभाई है। दिल्ली में डीएमके के कार्यालय का उद्घाटन हुआ, जिसमें कई गैर-भाजपाई नेता शामिल हुए। खास बात है कि इनमें से कई नेता भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एकजुट होने की अपील कर चुके हैं। दिल्ली में हुए कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, वाम नेता सीताराम येचुरी और डी राजा, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्लाह और तृणमूल कांग्रेस औ टीडीपी के प्रतिनिधि शामिल हुए। स्टालिन ने अन्ना-कलईनार अरिवलयम का उद्घाटन किया। इस दौरान सोनिया ने दफ्तर की लाइब्रेरी का उद्घाटन किया। खास बात है कि डीएमके और कांग्रेस और खासतौर से करुणानिधी और गांधी परिवार में खास रिश्ता है। हालांकि, भाजपा के बढ़ते चुनावी प्रभाव के चलते स्टालिन भी कांग्रेस को सुझाव दे चुके हैं कि उसे अखिल भारतीय स्तर पर सभी पार्टियों के साथ 'सैद्धांतिक मित्रता' रखनी चाहिए। स्टालिन भी कह चुके हैं कि 'भारत को बचाने' के लिए सभी पार्टियों को साथ आना चाहिए। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद कई क्षेत्रीय दलों ने भी इसी तरह की बातें की। हालांकि, कई विपक्षी दल अब कांग्रेस को नेतृत्व करने के लिए नहीं कह रहे हैं। हाल ही में बंगाल की सीएम बनर्जी ने कई गैर-भाजपाई नेताओं को पत्र लिखकर बैठक बुलाने की अपील की थी। इस दौरान उन्होंने केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई को लेकर भी सरकार पर सवाल उठाए थे। इसके बाद येचुरी भी गैर-भाजपाई नेताओं के बीच स्टालिन को सबसे ज्यादा स्वीकृति प्राप्त नेता बता चुके हैं। उन्होंने डीएमके नेता से संघवाद, सामाजिक न्याय और भारत के लोगों को बचाने की कदमों के लिए मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने की अपील की थी। वहीं, शिवसेना ने भी इस सप्ताह यूपीए में बदलाव की मांग की है और सुझाव दिया है कि गठबंधन को नया नेता मिलना चाहिए। मुखपत्र सामना में प्रकाशित संपादकीय में बताया गया थआ कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार, महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे, स्टालिन, बनर्जी, केजरीवाल, तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव विपक्ष को  साथ लाने में सक्षम हैं।