“पचास वर्षो से अधिक महिला संधर्ष के इस विजय ने एकदिवसीय क्रिकेट को विश्व-विजेता का मुकम्मल-मुकाम मिला”

महिला एकदिवसीय विश्वकप 2025 भारत की फाइनल तक की यात्रा 1976 से (शांता रंगास्वामी, डायना एडुल्जी, मिताली राज ,झूलन गोस्वामी और हरमनप्रीत कौर तक की यात्रा का सपना साकार हुआ) अविस्मरणीय जीत।‘’महिला एकदिवसीय क्रिकेट विश्वकप वर्ष 2025 भारत और श्रीलंका के संयुक्त मेजबानी के अविस्मरणीय पलों ने हमें विश्व चैंपियन की खिताब को हासिल किया। जो हमें भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ियों ने भारत के 145 करोड़ लोगों को जो तोहफा 02-11-2025 को फाइनल में दक्षिण अफ्रीका की टीम को हरा कर दिया है । इसके पहले दो बार इस मुकाम तक पहुँचने की कोशिश 2000 व 2017 में भी की गई थी पर असफलता मिली, जिसका गुब्बार सभी के दिलोदिमाग में रहता था। अनेक अंतर्राष्ट्रीय भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों का दर्जा प्राप्त खिलाडियों का सपना था।  व उनसे जुड़े सभी सहयोगी सदस्यों के सब्र का परिणाम जो हमारे विगत 52 वर्षों के संधर्ष का नतीजा है । सारी टीम और मैंनेजमेंट से जुड़े सभी सदस्यों को इस शानदार प्रदर्शन पर हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं, जय हिन्द जय भारत। आज नयी पीढी को और समाज को इस खेल के साथ ही नहीं अन्य खेलों में महिलाओं की भागीदारी के अवसरो को तलाशने होंगे और तलाशे बी जा रहे है।।महिला क्रिकेट के इतिहास पर अगर हमारी नजर जाए तो , पहले 1973 में भारतीय महिला क्रिकेट संगठन (WCAI) का गठन हुआ था। फिर इसका विलय बी.सी.सी आई(BCCI) में होने का बाद जो कुछ भी सुधार हुए उन सब बातों से हम सभी वाकिफ हो रहे है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और खेल मंत्रालय ने पिछले कुछ वर्षों में महिला क्रिकेट को सशक्त बनाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं — समान वेतन नीति, बेहतर कोचिंग सुविधाएँ, और महिला आईपीएल जैसे प्रावधानों ने खेल में समान अवसरों को सुनिश्चित किया है। अब आवश्यकता है कि इस गति को बनाए रखा जाए। महिला खिलाड़ियों को न केवल सम्मान बल्कि स्थायी सुरक्षा, सुविधाएँ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतर प्रतिस्पर्धा के अवसर मिलते रहें। वर्ष 1976 की वह घटना मुझे  आज भी याद है जब शांता रंगास्वामी के नेतृत्व में  भारतीय महिला क्रिकेट टीम का पहला टेस्ट मैच वेस्टइंडीज के विरूद खेला था जो बेंगलूरू के चिन्नास्वामी स्टेडियम  में हुआ था जो ड्रा रहा।, बाद मे 1978 में पहली जीत दर्ज भी की थी, पटना के मोइनुल हक़ स्टेडियम में हुआ था। तब टीम में डायना एडुलजी भी थी जो बाद में कप्तान भी बनी। उन दिनों उनके एक बयान ने उन्हें चर्चा में ला दिया था। जब उन्होंने गावस्कर से शादी की इच्छा व्यक्त की थी। इस तरह 50 सालों का यह सफर हैं। तब से लेकर महिला क्रिकेट टीम में शर्मिला चक्रवर्ती संध्या अग्रवाल अंजुम चोपड़ा मिताली राज , झूलन देवी आदि अनेक नामी गिरामी जैसी शानदार खिलाड़ी सामने आई। महिला क्रिकेट खिलाड़ी भारत मे हुईं।  लेकिन शुरू में मीडिया ने महिला क्रिकेट को वो तवज्जो नहीं दी तो पुरुष टीम को मिलती रही।पहले महिला क्रिकेट के खिलाड़ियों को टीम की ओर से फीस कम मिलती थी पुरुष खिलाड़ियों के मुकाबले। अब जब सब कुछ समान है तो बहुत कुछ बदल रहा है। एक ऐसी ऐतिहासिक जीत जिसने महिलाओं के जज्बे को कुछ इस तरह वंयां किया क्रिकेट केवल खेल नहीं रहा—यह महिलाओं की आत्मनिर्भरता, साहस और नेतृत्व का प्रतीक बन गया है। इस जीत ने भारतीय महिला खिलाड़ियों को न सिर्फ़ विश्व पटल पर स्थापित किया है, बल्कि पूरे राष्ट्र को यह संदेश दिया है कि समर्पण और मेहनत किसी भी बाधा को मात दे सकते हैं। मैच देखने वालो के दिलोदिमाग में उस समय इस महिला टीम पर जो फीकरे कसे थे। वो उस समय की परिस्थियों का ऐसा काला पन्ना था और महिला खिलाड़ियों के प्रति पुरूषसत्तात्मक रवैय्ये का परिणाम जो आज परिवर्तीत परिवेश में उसका रूप ऐसा बदला जो हम देख रहे है, पर इस तक आने में कुछ लंबा समय लग गया। आज तक 41 टेस्ट खेले गए जिमसें 8 जीते, 6 हारे और 27 ड्रा रहे। 342 एकदिवसीय मैच खेले 188 जीते 147 हारे 2 मैट टाई रहे। और 5 बिना परिणाम के रहे। भारत तीन बार विश्वकप फाइनल में जगह तो बनाई जिसमें पहले आस्ट्रेलिया से 2005 में 98 रन से, और 2017 में इंगलैड़ से 9 रलों से हारी इस बार तीसरी बार जीत का सेहरा 02-11-2025 का दिन भारतीय खेल इतिहास के स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने दक्षिण अफ्रीका को हराकर अपना पहला विश्व कप जीत लिया है। यह जीत केवल एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि उस जज़्बे, संघर्ष और संकल्प की प्रतीक है जिसने अनेक वर्षों के संधर्ष के कई पड़ाव देखे जिसमें कुछ खिलाड़ियों ने खेल आरंभ तो किया पर उनसे जुड़ी अलग-अलग तरह की मानसीक, सामाजिक व परिवेशात्मक उस समय की कठिनाइयों से लड़ने में सक्षम न हो सकी और हार मानकर खेलना छोड़ दिया और जो इन कठिनाईयों का सामने न झुकते हुए उसके बावजूद भारतीय महिलाओं को खेल के शिखर तक पहुँचाया। यह विजय हर उस बेटी को समर्पित है जो अपने सपनों के लिए समाज की बंदिशों से लड़ रही है। इस तरह के संधर्ष के साथ परिवार का व उसमें माता-पिता का सहयोग हमेशा उनके साथ रहा वे ही आज हमारे सामने है, परंतु अब स्थिति मे बहुत सुधार होने लगा है। पहले महिला क्रिकेट के लिए पुरूषों की तुलना में वो सम्मान भी नहीं , साधन भी नहीं इन सब बातों के लिए बहुत से पूर्व व वर्तमान महिला खिलाड़ियों के साक्षात्कार हमारे लिए ऐसे प्रमाण प्रस्तुत करते आ रहे है जिससे उनके संधर्ष को समझा जा सकता है। क्रिकेट का खेल और उससे जुड़े खिलाडियों ने आजकल की आर्थिक समपन्नता की दौड़ का एक ऐसा मुकाम/अध्याय पा लिया है, जो फिल्मी चकांचौध को भी अपने गिरफ्त में लेने में पीछे नहीं है। इस खेल के प्रति विश्व का रवैय्या जो भी हो पर भारत देश में उसने इस खेल को जिस तरह विगत 50 वर्षो से अधिक के समय से जिस रफ्तार में अपनी पहचान बनाने में व उसे साबित करने में लगा हुआ है। उसके परिणाम के रूप में एक अप्रत्याशित विश्वकप पुरूषों के 1983 के विजय अभियान ने इस यात्रा को आज जिस मुकाम तक ला खड़ा किया है। उसमें आज महिलों ने भी अपनी उपलब्धियों के परचम फहराने में कहीं भी पीछे नहीं लगती लगातार उनके संधर्ष का परिणाम आज 2025 के एकदिवसीय विश्वकप के माध्यम से हम देख रहे है। 

         

आज संचार माध्यम ने टेलीविजन के आगमन के बाद जो कुछ भी हुआ हर दिन की बातों से हमें अवगत कराने के साथ उसके आने वाले समय के विषय में प्रमुख क्रिकेटरों के साक्षात्कार का जो प्रसाद लगातार परोसते आ रहे है। हर दिन की खेल गतिविधियों में प्रमुखता के साथ आज क्रिकेट का बोलबाला अन्य खेलों की तुलना में ज्यादा हो गया है । चार वर्षो में होने वाले ओलंपिक खेलों के महत्व को व आज के दौर की जरूरत का ध्यान रखते हुए इसमें क्रिकेट को भी स्थान देने की स्थिति निर्मित हो गई है। और जल्द इसे हमें विश्वपटल पर ओलंपिक में भी इस खेल को भी प्रतिस्पर्धात्मक रूप से देखने का सौभाग्य मिलेगा। 
पहली बार महिला क्रिकेट टीम ने विश्व कप जीता मुझे भी बहुत खुशी हुई। ऐसे पल किसी राष्ट्र के जीवन मे कम आते हैं। अब लोग कहेंगे ,मोदी है तो मुमकिन है, अमित शाह के बेटे जय शाह का कमाल है। बहरहाल टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर और स्मृति मंधाना को बधाई। पूरी टीम को बधाई। इस विश्व विजेता टीम के मुख्य कोच अमोल मजूमदार की कहानी ऐसी ही है। संघर्ष, धैर्य और अधूरे सपनों के बीच लिखी गई एक अमर कहानी। वह खिलाड़ी जिसने घरेलू क्रिकेट में रनों का अंबार लगाया, लगभग 11 हजार से भी अधिक रन ,हर सीज़न में चयनकर्ताओं के सामने अपनी दावेदारी ठोकी, पर भारत की नीली जर्सी उनसे बस कुछ इंच दूर रह गई। शायद किस्मत उन्हें किसी और बड़े मंच के लिए तैयार कर रही थी। वह मंच, जहाँ ताली बजाने वाला नहीं, बल्कि ताली बजवाने वाला बनना था। आज वही अमोल मजूमदार भारतीय महिला टीम के कोच हैं।  और उन्होंने भारत को वर्ल्ड कप जितवाया है। जिस शिखर तक वो खुद नहीं पहुँच पाए, वहीं उन्होंने अपनी टीम को और अपने देश को पहुँचा दिया। कहा जाता है, राजा वह नहीं होता जो ताज पहनता है, असली राजा वह होता है जो अपने लोगों को जीत का रास्ता दिखाता है। शायद अमोल मजूमदार ऐसे ही राजा का रोल निभाने हमारे लिए इस विश्वकप के लिए जिन्हें जर्सी नहीं मिली, पर इज़्जत की पूरी विरासत मिल गई। उन्हें वो सब नहीं मिला था। उस समय पर आज जो मिला वो निश्चित ही बहुत कुछ कहता है। इस बात की कल्पना का साकार होना इस कोच के लिए ज़रा हम सोचे, जब मैदान में भारत की बेटियाँ ट्रॉफी उठाकर झूम रही थीं, तब बाहर खड़े अमोल मजूमदार के चेहरे पर कैसी मुस्कान रही होगी। शांत, संतुलित और संतोष से भरी मुस्कान। जिंदगी जब भी देती है वो संभाल पाना कितना कठिन हो जाता है , कुछ ऐसा ही उनके लिए भी चरितार्थ हुआ। मेरी उम्मीद से ज्यादा व पूरा मिला आज अमोल मजूमदार सिर्फ एक कोच नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं, उन सबके लिए जो हार मान चुके हैं। कभी-कभी किस्मत किसी खिलाड़ी को टीम की जर्सी नहीं देती, लेकिन उसे ऐसा मुकाम दे देती है कि पूरी दुनिया झुककर सलाम करे।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने आज दक्षिण अफ्रीका को हराकर वह कर दिखाया जो दशकों से भारतीय खेल प्रेमियों का सपना था। भारत की कप्तान हरमनप्रीत कौर के नेतृत्व में टीम ने न केवल खेल कौशल दिखाया, बल्कि मानसिक दृढ़ता और रणनीतिक क्षमता का भी अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। जब दक्षिण अफ्रीका जैसी मज़बूत टीम के सामने भारत उतरा, तो पूरे देश की निगाहें इस मुकाबले पर थीं। भारतीय महिला क्रिकेट का इतिहास संघर्षों से भरा रहा है। एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं के मैचों में दर्शकों की संख्या सैकड़ों में भी पूरी नहीं होती थी। परंतु 2025 में यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई। घरेलू टूर्नामेंट्स, महिला आईपीएल (WPL), और युवा खिलाड़ियों के लिए बढ़ते अवसरों ने भारतीय टीम को एक नई ताकत दी। शेफाली वर्मा, स्मृति मंधाना, और दीप्ति शर्मा जैसी खिलाड़ियों ने न केवल मैदान पर कमाल किया, बल्कि नई पीढ़ी की प्रेरणा भी बनीं। आज की जीत में हर खिलाड़ी का योगदान महत्वपूर्ण रहा — चाहे वह अंतिम ओवर की गेंदबाजी हो या फील्डिंग में दिया गया असाधारण प्रदर्शन। इस खेल की एक बात जो मुझे लगती है खिलाड़ी जब मैदान में फिल्ड़िग के लिए उतरते है तभी वे एक साथ होते है ,खेलते तो टीम के लिए होते है पर शेष समय व्यक्तिगत रूप से प्रर्दशन जैसे बेटिंग और बोलिंग के दौरान उनके दिलोदिमाग मे जो चलता है वह निश्चित ही एक अलग तरह का संधर्ष होता है । इस समय अच्छी बेटिंग मे साथी खिलाडी जो दूसरी तरफ होता है उससे जो बाते होती है व बीच बीच में कुछ संदेश कप्तान की तरफ से आते है वो होते है, अपनी पारी को संवारने के लिए एक स्कोर बनाने के लिए। और अच्छी बोलिंग के लिए फिल्डर का सहयोग उस बोलर की इच्छा शक्ति को किस कदर बढाता है या घटाता है  कैच पकड़कर या कैच छोड़कर, यह बहुत मायने रखता है। हर फिल्डर कभी भी अंतिम समय तक प्रयास करता है अच्छी फिल्डिंग करके तब टीम का व उस बोलर का मनोबल बहुत उचाँई को छूने लगता है। हर खिलाड़ी अहम है , उसमें सबसे अधिक रोल में आजकल के परिवर्तीत नियमों में डी.आर.एस. की व्यवस्था में विकेटकीपर को अत्यधिक सतर्क रहना होता है ,जो बेटसमेन के व विकेट के बहुत करीब होता है। भारतीय महिला टीम के जज्बे को सलाम कुछ एक असाधारण परिस्थितियों को छोडकर पूरे समय सभी ने बहुत ही अच्छा प्रर्दशन किया। फाइनल के मैच में भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए लगभग 298 रन का मजबूत लक्ष्य रखा। पारी की शुरुआत शेफाली वर्मा और स्मृति मंधाना ने दमदार अंदाज में की। मंधाना की शतक जैसी पारी ने टीम को मजबूत नींव दी, वहीं कप्तान हरमनप्रीत कौर ने मध्य क्रम में टीम को स्थिरता प्रदान की। फाइनल के दबाव में भी भारतीय गेंदबाजों ने संयम नहीं खोया। दीप्ति शर्मा और रेणुका ठाकुर ने सटीक गेंदबाजी से दक्षिण अफ्रीका को लक्ष्य से दूर रखा।  अंतिम ओवरों में जब जीत और हार के बीच की दूरी कुछ गेदों की रह गई थी, तब पूरी टीम ने जिस धैर्य से खेला, वह भारतीय क्रिकेट की परिपक्वता को दर्शाता है। इस पूरे प्रतिश्पर्धा के दौरान उतार-चढाव तो आते रहे पर दक्षिण अफ्रीका की कप्तान का जूझारूपन व उनके सर्वाधिक रनों का रिकार्ड हम कभी नहीं भूल सकते। इस जीत का महत्व केवल खेल तक सीमित नहीं है। यह जीत समाज में महिलाओं की भूमिका के प्रति जडकर गये दृष्टिकोण को बदलने वाली घटना है। लंबे समय तक खेल को पुरुष प्रधान माना जाता रहा, जो पूरी तरह गलत साबित होने लगा है . ऴिश्व सल्तर पर अनेक प्रतिस्पर्धाओं में महिलाओं की उपस्थिति इसके प्रमाण है। आज भारतीय बेटियों ने यह साबित कर दिया कि खेल का मैदान अब किसी एक लिंग तक सीमित नहीं सब के लिए समान है। इसके साथ-साथ आजकल विकलांगों के प्रति भी उनके खेल कौशल हमारे सामने प्रमाण के लिए उपलभ्ध है जिसमें महिलाओं का योगदान भी है। यह विजय देश के ग्रामीण इलाकों में खेलने वाली उन लड़कियों के लिए प्रेरणा है, जो अब खुद को किसी भी सीमा में बंधा हुआ महसूस नहीं करेंगी। इस जीत ने भारत को एक नई जिम्मेदारी भी दी है। आने वाले वर्षों में भारत को न केवल इस प्रदर्शन को दोहराना है, बल्कि खेल की जड़ों को और गहरा करना है। स्कूल स्तर से लेकर विश्वविद्यालय तक, खेल शिक्षा और महिला खिलाड़ियों के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचा तैयार करना समय की माँग है। जीले स्तर पर इस ओर घ्यान देना जरूरी होगा।  साथ ही, मीडिया और दर्शकों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि यह उत्साह केवल एक दिन या टूर्नामेंट तक सीमित न रहे मजबूत इरादों के साथ साथ देना होगा। हर तरफ इस ओर घ्यान भी दिया जाने लगा है। आज भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने यह साबित कर दिया है कि साधन के आभाव से जो शुरूआत हुई थी आज साधनों के साथ तक की यात्रा के अनेक पड़ाव महिला टीम को इतना आश्वस्त अपने बी.सी.सी.आई को करने में सक्षम हो गई की हमारी उपस्थिति भी भविष्य के साथ जुड़ते हुए एक इतिहास बनाएगी। आज की यह यह जीत केवल 11 खिलाड़ियों की नहीं, बल्कि पूरे भारत की है — उन परिवारों की, जिन्होंने अपनी बेटियों को सपने देखने की आज़ादी दी; उन कोचों की, जिन्होंने सीमित संसाधनों में भी प्रतिभा को निखारा; और उन दर्शकों की, जिन्होंने हर गेंद पर टीम का हौसला बढ़ाया। आज हमारे सामने चयन समिति के पास इतने विकल्प उपस्थित हो गए है की टीम के चयन में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की सूची में एक कतार उपस्थित होने लगा है। एक खिलाड़ी उपलब्ध न होने पर दूसरा तैयार मिलता है।  अब भारत की नारी शक्ति नें विश्व की नई मिसाल बनाई हैं — जिनकी जीत ने हर भारतीय के दिल में गर्व, प्रेरणा और उम्मीद की लौ जगा दी है।

भारतीय टीम के ICC महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप, 2025 की शुरूआत तो निश्चित ही हमारे लिए बहुत अच्छी रही फिर बीच में कुछ लड़खडाई जब तीन मैच लगातार हारने के बाद एक चैंपियन की तरह अपने अगले मैचों के लिए संधर्ष करते हुए सेमीफाइनल में जगह बनाने के लिए जिस खेल कौशल का परिचय दिया सकी जितनी भी तारीफ करें कम होगी। और सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया जैसी बड़ी टीम को जिस तरह टकर देकर जेमिमा रोड्रिग्स का वो शानदार प्रर्दशन एक ऐसे खिलाड़ी की सबसे ज्यादा चर्चा उस मैच हुई है । साथी खिलाड़ियों का योगदान निश्चित ही बहुत ही सराहनीय रहा। फाइनल में आने के पश्चात इसमें खेलने वाले खिलाड़ियों में एक ऐसी उपस्थिति जो प्रतिमा रावल अभी तक सर्वाधिक स्कोर करने वाली खिलाडी के चोटिल होने के कारण इस टीम की सदस्य बनी एक अजीब उत्साह का आगमन रहा। शेफाली वर्मा का नाम उनकी जितनी भी तारीफ की जाए बहुत कम है। इस टीम के अन्य सदस्यों की उपलब्धि भी कोई कम नहीं । खुद खप्तान हरमन प्रीत कौर, स्मृति मंधाना, जेमिमा रोड्रिग्स, अमनदीप कौर, हरलीन देओल, तेजल हसब्न्सि, पूजा वस्त्राकर, दयालन हेमलता, सजीवन साजना, यस्तिका भाटिया, उमा क्षेत्री, स्नेह राणा, राधा यादव, श्रेयंका पाटिल, आशा शोभना,प्रिया मिश्रा,साइमा ठाकोर, अरूंधति रेड्डी, सायाली सतघरे, काशी गौतम, ऋचा घोष, रेणुका ठाकुर, क्रांति गौड़ आदि । इन मैचों के दैरान क्षेत्र रक्षक के तौर पर मेरे विचार से राधा यादव, जेमिमा रोड्रिग्स और अमनदीप कौर के रूप में हमें नये नाम मिले। मेरे विचार से इन मैचों मे डी.आर.एस के प्रवधान को लेकर हमारी टीम को बहुत सफलता नहीं मिली ।       विश्व विजेता बनने के बाद जिस एक खिलाड़ी की सबसे ज्यादा चर्चा है, वो हैं दीप्ति शर्मा. फाइनल मुकाबले में साउथ अफ्रीका को 52 रन से हराने में दीप्ति के 52 रन और 5 विकेट सबसे अहम रहे. दीप्ति को प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया. दीप्ति शर्मा ने इस टूर्नामेंट में 215 रन बनाने के साथ-साथ सबसे ज्यादा 22 विकेट झटके हैं.। एक और नाम शेफाली वर्मा का नाम 87 रन और दो विकेट अदभुत प्रदर्शन। 50 से अधिक वर्षो का संधर्ष की मेहनत आज रंग लाई है।‘’यह शब्द है भारत की पूर्व कप्तान डायना एडुल्जी के वो तब भारतीय महिला टीम की कप्तान थी जब महिला क्रिकेट के लिए न तो मैदान खुले थे, न दर्शक दीर्घा में कोई भीड़ होती थी न मीडिया की सुर्खियाँ, न स्पॉन्सरशिप, न सुविधाएँ। फिर भी उनके जैसे कुछ लड़कियाँ थीं जो क्रिकेट को छोड़ नहीं पाईं। 1976 में जब उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया, तब महिला क्रिकेट बोर्ड के पास खिलाड़ियों को जर्सी तक नहीं मिलती थी। कई बार टीम खुद अपनी यूनिफॉर्म सिलवाती थी, ट्रेन में बैठकर बिना टिकट यात्रा करती थी, और कई बार होटल न मिलने पर ग्राउंड के ड्रेसिंग रूम में ही सोना पड़ता था। फिर भी वो डटी रहीं 15 साल तक भारत की कप्तान रहीं (1978–1993), टीम को वो पहचान दिलाई जो आज एक आंदोलन बन चुकी है। और आज, जब उन्होंने हरमनप्रीत कौर की अगुवाई में भारत को पहला महिला वनडे विश्व कप जीतते हुए देखा तो उनकी आँखों में सिर्फ़ आँसू नहीं थे, बल्कि पचास सालों का संघर्ष, त्याग और गर्व था।“ डायना आगे कहती हैं: “यह सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं है, यह हर उस लड़की की जीत है जिसने बिना माइक, बिना मंच सिर्फ़ क्रिकेट से प्यार किया था।” आज शेफाली वर्मा की चौके-छक्कों में और दीप्ति शर्मा के 5 विकेटों में छिपी है उन सभी अनसुनी क्रिकेटरों की कहानी, जो कभी मैदान में सिर्फ़ अपने जज़्बे के भरोसे उतरी थीं। यह जीत सिर्फ़ 2025 की नहीं बल्कि यह 1976 से शुरू हुई उस यात्रा का मुकम्मल अंत है, जो अब एक नई सुबह बनकर सामने आई है।मिताली राज ने अपने एक साक्षात्कार में भविष्य में आशातीत सफलता प्राप्त करने की क्षमता रखने वाले उन दो खिलाड़ियों का जिक्र किया था जो इस फाइनल में हमनें पाया वे नाम थे। शेफाली वर्मा और दिप्ती शर्मा। झूलन देवी जी का सपना साकार हुआ 2017 मे जो हो न सका । भारत के विराट कोहली, सुर्यकुमार यादव आदि। विश्व के अन्य देशों के एड़म गीलक्रिस्ट, ए बी डेविलियस आदि अनेक नाम है इस बार केवल खिलाड़ी मैदान में नहीं खेल रहे थे उनके साथ पूरी भारत की 145 करोड़ की आबादी का व स्टेडियम में दर्शक दीर्धा में उपस्थित हमारे क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले श्रीमान सचिन तेंदुलकर और हमारे रोहित शर्मा व अन्य बहुत से गणमान्य लोगों की दुआओं का परिणाम रहा। देश विदेश के संदेशों की भरमार सुनील गवास्कर जी की गाने की इच्छा ने जिस तरह खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया काबिलेतारीफ है। पुनः ढेरों बधाईयाँ हमारी भारतीय महिला टीम को और पूरे मेनेजमेंट स्टाफ को जो भी इसमें शामिल थे और अंत मे मुम्बई की जनता को जिन्होंनें स्टेडियम में व उसके बाहर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए इस उपलभ्धि के प्रत्यक्ष गवाह रहे । अन्य सभी जिन्होंने टी.वी पर देखकर इस खेल व फाइनल का आनंद लिया और अपने स्नेह का इजहार किया।

चिरंजीव(लिंगम चिरंजीव राव)
म.न.11-1-21/1, कार्जी मार्ग, इच्छापुरम
श्रीकाकुलम (आन्ध्रप्रदेश) पिन 532-312
स्वतंत्र लेखन(संकलन व लेखन)
मों न. 8639945892