अयोध्या । मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भक्तों के आराध्य ही नहीं मानवता के महानायक भी हैं। रामनगरी अयोध्या में रविवार को राम जन्मोत्सव के अवसर पर यह सच्चाई पूरी भव्यता से प्रतिपादित हुई। इस शुभ बेला में रामनगरी आस्था के केन्द्र में थी और नगरी की आस्था के केन्द्र में वह रामजन्मभूमि थी, जो भव्य मंदिर निर्माण के साथ पांच सदी बाद अपना खोया गौरव वापस प्राप्त कर रही है। 
अयोध्या में सुबह से ही रामलला के दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ था। रामजन्मभूमि के इर्द-गिर्द से लेकर नगरी की संपूर्ण पंच कोसीय परिधि में तिल तक रखने की जगह नहीं बची थी। यहां पर तो आज चहुंओर श्रद्धालुओं की आस्था ललक रही थी। अयोध्या में मठ-मंदिरों, धर्मशालाओं एवं सार्वजनिक स्थलों पर डेरा जमाए श्रद्धालु शनिवार को पौ फटते ही यहां पुण्यसलिला सरयू की ओर उन्मुख हुए। प्रात: से पूर्वाह्न के पांच-छह घंटे तक सरयू का दो-तीन किलोमीटर लंबा घाट स्नानार्थियों से पटा रहा। स्नान के बाद श्रद्धालुओं का अंतहीन क्रम मंदिरों की ओर प्रवाहित हुआ। 
इसके बाद मध्याह्न रामजन्मोत्सव के मुहूर्त के साथ त्रेता में रामजन्म के समय की यह पंक्ति फलीभूत हुई। गृह-गृह बाज बधाव सुभ प्रगटे सुषमा कंद/ हरषवंत सब जहं-तहं नगर नारि नर वृंद। रामजन्मभूमि सहित नगरी के हजारों मंदिरों में राम जन्मोत्सव की रस्म की तैयारियां घंटों पूर्व से चल रही थीं। विशेष पूजन-अनुष्ठान के बीच रामलला का एक क्विंटल पंचामृत से अभिषेक किया गया। अन्य मंदिरों में भी यह अनुष्ठान यथाशक्ति भव्यता के साथ संपादित हुआ। 
पूजन-अभिषेक के बाद रामलला को रत्नजडि़त पीली पोशाक धारण कराई गई। अन्य मंदिरों में भी श्रीराम के साथ मां सीता का पूरे यत्न से श्रृंगार किया गया। इस तरह की तैयारियों के शिखर के बीच जैसे ही 12 बजा रामनगरी के हजारों मंदिरों के पट एक साथ खुले और राम जन्मोत्सव का आह्लाद पूरी भव्यता से निर्वचित हुआ। करीब दस मिनट तक चली प्राकट्य आरती थमने के साथ आराध्य के प्राकट्य से जुड़ी तंद्रा टूटती है और भक्त अगली पहल के रूप में प्राकट्य स्तुति में लीन होते हैं। रामजन्मभूमि के अलावा रामभक्तों की शीर्ष पीठ कनकभवन के विशाल प्रांगण में भी आस्था की इंद्रधनुषी छटा बिखरी थी।