रणथंभौर का राजा उस्ताद टाइगर T-24, जिसकी एक झलक पाने के लिए पर्यटक घंटों इंतजार करते थे, वह अब दुनिया में नहीं रहा. उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क लाए गए टाइगर 'उस्ताद' ने बुधवार को अंतिम सांस ली। बायोलॉजिकल पार्क के चिकित्सकों की ओर से पोस्टमार्टम के बाद टाइगर का अंतिम संस्कार किया जाएगा। इंसानों पर हमला करने और उन्हें मारने के कारण उसे रणथंभौर के खुले जंगल से उदयपुर के बायोलॉजिकल पार्क में लाया गया था, जहां एक हेक्टेयर एनक्लोजर में पिछले 8 साल से कैद था. लंबे समय से पैर में कैंसर होने के कारण टाइगर परेशानी से जूझ रहा था, जिसके बाद उसकी मौत हो गई. वन विभाग डीएफओ ने एबीपी को बताया कि दोपहर करीब 3.00 बजे टाइगर ने अंतिम सांस ली है. अ

टाइगर T-24 को हड्डियों का कैंसर था
बायोलॉजिकल पार्क के डॉक्टर हंस कुमार जैन ने बताया था कि उस्ताद T-24 के पिछले दाएं पैर में हड्डी बढ़ रही थी. वह चल तो पा रहा था लेकिन पिछला एक पैर उठाकर चल रहा था क्योंकि उसमें दर्द था. जयपुर के वरिष्ठ डॉक्टर्स की टीम उसका इलाज कर रही थी. दर्द निवारक दवाइयां भी दी जा रही थीं, लेकिन डोज ज्यादा नहीं दे सकते, इसलिए अब आगे के उपचार की सलाह भी ली थी. 

साल 2006 में हुआ था उस्ताद का जन्म...
साल 2005 में रणथंभौर टाइगर रिजर्व जंगल में खुशियां छाई थी, जब टाइगर झुमरू के घर तीन शावक का जन्म हुआ था। इनमें दूसरे नंबर का T-24 उस्ताद का भी जन्म हुआ था। जन्म से ही अन्य टाइगर की तुलना में उस्ताद की आंखों में तेज और चेहरे पर विशेष आकर्षण था। उस्ताद की मां का नाम गायत्री था। उस्ताद का एक बड़ा भाई और एक छोटा भाई भी था, बड़े भाई का नाम T-23 भोला, जबकि सबसे छोटे भाई T-34 कुंभा था। रणथंभौर में उस्ताद की संगिनी T-39 (नूर) थी. उस्ताद रणथंभौर में 9-10 साल तक रहाजब  मां-पिता और तीन भाइयों के साथ उस्ताद जंगल में निकलता तो उसे देखने के लिए हर कोई लालायित नजर आता था। बचपन से ही अपने तीनों भाइयों में उस्ताद थोड़ा शरारती था। वह जंगल पर बचपन से ही अपना रुतबा कायम करना चाहता था।

अपने मां-बाप का सबसे प्रिय उस्ताद तीनों भाइयों में सबसे नटखट और शरारती था, लेकिन बचपन से ही टाइगर T24 उस्ताद को कई परेशानियों और बीमारियों का भी सामना करना पड़ा था। कई बार उसका स्वास्थ्य खराब होने के कारण उसको ट्रेंकुलाइज करना पड़ा। हाल ही में उसके एक पैर की हड्डी बढ़ने के कारण उसका इलाज किया गया था।

फिर ऐसे बदली जिंदगी और मिली उम्र कैद
उस्ताद ने जुलाई 2010, मार्च 2012 में दो ग्रामीणों और अक्टूबर 2012 में रणथंभौर के फॉरेस्ट गार्ड पर हमला किया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी. वहीं, 8 मई 2015 को उस्ताद ने रणथंभौर के फॉरेस्ट गार्ड रामपाल सैनी को मार दिया था. यहां से उसकी जिंदगी बदल गई. इसके बाद से उस्ताद की पहचान और ज्यादा बढ़ गई. फिर उसे रणथंभौर से शिफ्ट करने की कवायद शुरू हुई और साल 2015 में ही उदयपुर सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में भेजा गया. उस्ताद 60-100 वर्ग किमी एरिया से एक हैक्टेयर के एनक्लोजर में आ गया. समझ सकते हैं कि उम्रकैद हो गई. पिछले आठ साल से यह जंगली बाघ यहां सजा भुगत रहा था। 

बीच में उस्ताद को पेट की बीमारी ने भी जकड़ लिया था, जिसके लिए प्रदेश के बाहर से डॉक्टर को बुलाया था और इलाज हुआ. उसे अभी कीमा गर्म कर खिलाया जाता था. उस्ताद अजनबी को देखकर छिप जाता था, लेकिन विद्या की दहाड़ से खुश होता है. अधिकारियों ने बताया कि अन्य दो टाइगर कुमार और विद्या का होल्डिंग एरिया बंद भी कर देते हैं, लेकिन उस्ताद का नहीं करते. उस्ताद को फ्री छोड़ रखा था, जब मन चाहे होल्डिंग एरिया में आए या बाहर पिंजरे में ही रहे. उसके पिंजरे के पास ही टाइग्रेस विद्या का पिंजरा है. विद्या की दहाड़ सुनकर काफी खुश रहता था.