भोपाल ।   मध्य प्रदेश में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे के मुकाबले में सबसे दिलचस्प तस्वीर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बनने की संभावना है। अंचल में महाराज पुकारे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल होने और अंचल में दिग्विजय सिंह(राजा पुकारे जाने वाले) की बढ़ती सक्रियता के बाद बदली परिस्थितियों में मुकाबला सीधे महाराजा बनाम राजा होना तय माना जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि अंचल में यह पहला चुनाव होगा, जब कांग्रेस भी पूरी एकजुटता के साथ भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ेगी, वरना अब तक राजा-महाराजा की कांग्रेस आपस में ही लड़कर एक-दूसरे को निपटा देती थी। इस अंचल में विधानसभा की 34 सीटें हैं, जो अगली सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा करेंगी। वर्ष 2018 में यहां कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं। दरअसल, चुनाव में तमाम मुद्दों और समीकरणों के साथ सियासी अदावत भी अहम है। ग्वालियर-चंबल ही वह क्षेत्र है, जिसमें बड़ी संख्या में विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी और वर्ष 2020 में प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बन गई। उपचुनाव में अधिकांश को भाजपा ने टिकट दिया और वह फिर विधायक चुने गए। उपचुनाव में सर्वाधिक 16 सीटें ग्वालियर-चंबल की थीं, जिसमें भाजपा के पास 10 सीटें ही आई थीं। जबकि छह सीटों पर कांग्रेस तब जीती थी। इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया चुनाव हार गए थे। इधर, हालात ऐसे बन चुके हैं कि ग्वालियर-चंबल से भाजपा और कांग्रेस के कई दिग्गज नेता होने के बावजूद विधानसभा चुनाव में मुकाबला राजा और महाराजा के बीच ही होने की संभावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं। भाजपा की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया बड़ा चेहरा हैं, तो कांग्रेस ने सिंधिया के खिलाफ मोर्चा संभालने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उतार दिया है। दिग्विजय सिंह ने अंचल में कई दिन बिताकर रणनीति भी बनाई है।

भाजपा के लिए आसान नहीं चंबल-ग्वालियर

भाजपा भले ही समरसता का दावा करे, लेकिन ग्वालिययर-चंबल में कांग्रेस से आए नेताओं के कारण दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। पार्टी के मूल नेता और कार्यकर्ता नाराज बताए जा रहे हैं। सिंधिया समर्थकों और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय परवान नहीं चढ़ पाया है। इसी का नतीजा रहा कि पार्टी ग्वालियर में 57 साल बाद महापौर का चुनाव हार गई। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लोकसभा क्षेत्र मुरैना में भी महापौर की कुर्सी भाजपा के हाथों से निकल गई। ग्वालियर-चंबल में 2018 से पहले हुए एट्रोसिटी आंदोलन का असर अब तक महसूस किया जा रहा है। जब मुकाबला सीधे कांग्रेस से होगा, तो इस मुद्दे से पार पाना महाराज के लिए भी बड़ी चुनौती होगा। भाजपा भूली नहीं है कि इसी मुद्दे पर एससी मतदाता पार्टी से दूर हुए थे और सत्ता का समीकरण बदल गया था।

इनका कहना है

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस के पास प्रत्याशी को तो छोड़िए, बूथ में बैठने के लिए एजेंट तक नहीं हैं। इसलिए मालवा के बाद भाजपा को सर्वाधिक सफलता इसी अंचल में मिलेगी। इसमें राजगढ़- गुना भी शामिल है।

- डा हितेष बाजपेयी, प्रवक्ता भाजपा।

कांग्रेस के पास कोई नेतृत्वकर्ता ही नहीं है। दिग्विजय सिंह जनता का भरोसा खो चुके हैं। वे अपना गुना राघौगढ़ बचा लें, वही बहुत कठिन है। भाजपा के पास एक नहीं कई चेहरे हैं और जनता का उन पर भरोसा भी है। इसलिए यहां की सारी सीटें भाजपा जीतेगी।

जीतू जिराती, प्रभारी ग्वालियर-चंबल संभाग भाजपा

भाजपा को उपचुनाव 2020 में ही कांग्रेस ने अपनी ताकत बता दी थी। सरकारी मशीनरी की बदौलत भाजपा कुछ सीटें बचा पाई थी। अब आने वाले चुनाव में जनता खुद भाजपा को सबक सिखाकर कमल नाथ सरकार की वापसी कराएगी।

- केके मिश्रा अध्यक्ष मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग