साइबर ठगी के माध्यम से लोगों की जेबें खाली की जा रही हैं। विभिन्न इंटरनेट साइट्स पर कभी बेहतर हालात में पुराने सामान की सस्ते दामों पर बिक्री करने, कभी मोटे वेतन पर नौकरी देने तो कभी घर बैठे लाखों रुपए कमाने का झांसा देकर साइबर ठग ठगी की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। खास बात यह है कि अभी तक साइबर ठगी करने वाले लोगों के बैंक अकाउंट से पैसे उड़ाने के लिए झांसा देकर केवल ओटीपी नंबर मांगने का तरीका ही अपनाते थे, लेकिन अब इसके अलावा भी कई ऐसे तरीके अपनाए जा रहे हैं जो ठगी में कारगर साबित हो रहे हैं। इसके माध्यम से लोग बड़ी आसानी के साथ ठगों के चुंगल में फंस कर अपनी जेबे खाली कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर फेसबुक, इंस्टाग्राम व व्हाट्सएप सहित कई ऐसी साइट्स हैं, जहां पर साइबर ठग पूरी तरह से सक्रिय होकर व लोगों को झांसा देकर ठगी को अंजाम दे रहे हैं। हालांकि, जिले में बनाए गए साइबर सेल में हर महीने औसत 100 से अधिक शिकायतें पहुंच रही हैं। जिन्हें ट्रेस करना पुलिस के लिए भी चुनौती बना हुआ है। कारण जिस आईडी यहां फिर मोबाइल नंबर से ठगी की जाती है उसे साइबर ठगी को अंजाम देने वाले पूरी तरह से ब्लॉक कर देते हैं। ऐसे में पुलिस के लिए इन्हें ट्रेस करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

मेरी ट्रांसफर दूसरे राज्य में हो गई है... इसलिए मेरे किराए के मकान में लगा एसी, डाइनिंग टेबल, एक्टिवा, वाशिंग मशीन, फर्नीचर, रेफ्रिजरेटर समेत सामान आधे से भी कम कीमत में बेचना है। इस नंबर पर संपर्क करें। फेसबुक पर इस तरह की कई पोस्टें पड़ी हुई है, जहां पर इस समान की अच्छी-अच्छी तस्वीरें भी अपलोड की गई है। इसके साथ ही एक मोबाइल नंबर दिया गया है। जिस पर संपर्क करने पर सामान की राशि एक बैंक अकाउंट में डालने या फिर गूगल पे करने को कहा जाता है। जैसे ही सौदा होने पर पैसे ट्रांसफर होते हैं साथ ही यह मोबाइल नंबर तथा बैंक अकाउंट बंद कर दिया जाता है। इस तरह की शिकायतें साइबर सेल में आम हो चुकी है।

बस्ती शेख के रहने वाले पवन कुमार बताते हैं कि फरवरी माह में उन्होंने फेसबुक पर एक सफेद रंग की एक्टिवा फार सेल देखी। जिस पर 2017 मॉडल के लिए 34 हजार रुपए की मांग की गई थी। उस नंबर पर संपर्क करने पर सामने वाले के साथ 32 हजार में सौदा तय हो गया। इस पर उसने उनसे 12 हजार रुपए पहले भेजने तथा इसके बदले उन्हें एक्टिवा की आरसी भेजने का करार किया, ताकि वह एक्टिवा से संबंधित दस्तावेजों की जांच कर सकें। जैसे ही उन्होंने गूगल पे पर 12 हजार रुपए भेजे तो इसके कुछ समय बाद ही यह मोबाइल नंबर बंद हो गया। दिन भर प्रयास करने के बाद भी जब मोबाइल ऑन नहीं हुआ तो इसकी शिकायत साइबर क्राइम को दी। लेकिन 3 माह बीत जाने के बाद भी साइबर ठग की को ट्रेस नहीं किया जा सका है।

साइबर ठग अब केवल ओटीपी नंबर के माध्यम से ही नहीं बल्कि स्क्रीन शेयरिंग एप्स के माध्यम से भी ठगी को आसानी से अंजाम दे रहे हैं। लोगों को फोन पर बहला-फुसलाकर स्क्रीन शेयरिंग एप डाउनलोड करवा कर उसकी बैंक अकाउंट हिस्ट्री से लेकर तमाम तरह की जानकारी हासिल कर लेते हैं। यह एक ऐसा ऐप है जिसके माध्यम से एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल तक तमाम तरह की जानकारियां शेयर हो जाती है। जिसमें साइबर ठग बैंकिंग डिटेल तथा अकाउंट्स की डिटेल हासिल कर ठगी को अंजाम दे रहे हैं।