नई दिल्ली।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के बढ़ते बकाया को एक आसन्न संकट के रूप में चिह्नित करते हुए “वोट के लिए रेवड़ियां” संस्कृति के अपने विरोध को और तेज कर दिया। वितरण क्षेत्र के सुधारों और एनटीपीसी की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 3 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की शुरुआत करते हुए उन्होंने बताया कि डिस्कॉम का उत्पादन कंपनियों पर 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है, क्योंकि उन्हें  सब्सिडी नहीं मिली है। वहीं, सरकारी विभागों और स्थानीय निकाय के बिजली बिल का भी भुगतान नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारत का बिजली क्षेत्र का घाटा दोहरे अंकों में है जबकि विकसित देश इसे एकल अंक में रखने में कामयाब रहे हैं। वितरण क्षेत्र के सुधारों के लिए एक पैकेज और नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को लॉन्च करते हुए उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि हम बहुत अधिक बिजली बर्बाद कर रहे हैं और इसके कारण हमें अपनी जरूरत से ज्यादा उत्पादन करना पड़ रहा है। उन्होंने राजनीति में रेवड़ी बांटने की संस्कृति (सब्सिडी कल्चर) के खिलाफ भी खूब सुनाया। वह इस महीने दूसरी बार इसके खिलाफ बोल रहे थे। इससे पहले उन्होंने 16 जुलाई को बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करते हुए इसके खिलाफ बोला था। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस चेतावनी को तब और बढ़ा दिया जब मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच ने इस मुद्दे पर सुझाव दिया कि वित्त आयोग उन राज्यों को धन के प्रवाह को विनियमित करने पर विचार करे जो सब्सिडी दे रहे हैं। सीजेआई ने कहा, "समय के साथ हमारी राजनीति में गंभीर विकृतियां आ गई हैं। राजनीति में लोगों को सच बताने का साहस होना चाहिए। लेकिन कुछ राज्यों में हम मुद्दों को कालीन के नीचे धकेलने की प्रवृत्ति देखते हैं। यह तत्काल तो राजनीतिक रूप से लाभदायक लग सकता है। लेकिन आज की इन चुनौतियों का समाधान नहीं करना हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों पर बोझ डालने जैसा है। पीएम मोदी ने कहा, "उत्पादन कंपनियां बिजली का उत्पादन कर रही हैं, लेकिन उन्हें भुगतान नहीं हो रहा है। जिस तरह एक घर बिना खाना पकाने के ईंधन के भूखा रह जाएगा, भले ही उसके पास मसाले हों। कोई वाहन बिना ईंधन के नहीं चलेगा, बिजली नहीं होने पर सब कुछ ठप हो जाएगा। अगर एक राज्य में बिजली क्षेत्र कमजोर हो जाता है तो इसका असर पूरे देश पर पड़ता है। पीएम मोदी ने कहा कि यह राजनीति का नहीं बल्कि राष्ट्रनीति एवं राष्ट्र-निर्माण से जुड़ा हुआ मुद्दा है। बिजली देश के विकास के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि कई राज्यों पर इन बिजली कंपनियों का एक लाख करोड़ रुपये से अधिक बकाया है। इसके अलावा विभिन्न सरकारी विभागों एवं स्थानीय निकायों की भी इन बिजली वितरण कंपनियों पर 60,000 करोड़ रुपये से अधिक देनदारी बाकी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्य सरकारों ने अभी तक बिजली कंपनियों को 75,000 करोड़ रुपये की अपनी सब्सिडी प्रतिबद्धता भी पूरी नहीं की है। राज्यों की तरफ से उपभोक्ताओं को दी जाने वाली रियायती बिजली के एवज में यह सब्सिडी राशि दी जानी है।