हिन्दू धर्म में विवाह को एक संस्कार माना है, समझौता, बंधन या लिव इन नहीं। विवाह का अर्थ होता है विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना।
विवाह संस्कार हिन्दू धर्म संस्कारों में 'त्रयोदश संस्कार' है। लिव इन रिलेशनशिप एक संस्कार नहीं बल्कि संस्कार के विरूद्ध आधुनिकता की घटिया सोच से उपजा संबंध है जो कई जगहों पर कॉन्ट्रैक्ट भी है।
हिन्दू वैदिक विवाह पद्धति : विवाह करके एक पत्नी व्रत धारण करना ही सभ्य मानव की निशानी है। बहुत सोच-समझ कर वैदिक ऋषियों ने विवाह के प्रकार बताए हैं- ब्रह्म विवाह, प्रजापत्य विवाह, गंधर्व विवाह, असुर विवाह, राक्षस विवाह और पैशाच विवाह। इसमें से ब्रह्म विवाह और प्रजापत्य विवाह को ही मान्य किया गया है। हालांकि हजारों साल के कालक्रम के चलते हिन्दू विवाह संस्कार में विकृति जरूर आ गई है फिर भी यह मान्य है। सभी वेद सम्मत विवाह ही करते थे।

इस विवाह पद्धति में पहले लड़के और लड़की के परिवार मिलते हैं। जब दोनों को रिश्‍ता समझ में आता है तो लड़के और लड़कियों को मिलाया जाता है। फिर लड़के और लड़की की सहमति से यह रिश्‍ता आगे बढ़ता है। इसके बाद टीके की रस्म होती है जिसे हर प्रांत में अलग अलग नामों से जाना जाता है। इसके करीब 3 माह बाद सगाई और फिर 3 माह बाद विवाह होता है। सगाई तक या सगाई के बाद विवाह तक दोनों ही परिवार के लोग एक दूसरे को अच्‍छे से समझ लेते हैं। ऐसे में विवाह पूर्व अंतिम मौका होता है जबकि यदि किसी एक परिवार को यह लगे कि यहां रिश्‍ता करना ठीक नहीं है तो वह सगाई तोड़कर नए रिश्‍ते की तलाश कर सकता है।

हिन्दू धर्मानुसार विवाह एक ऐसा कर्म या संस्कार है जिसे बहुत ही सोच-समझ और समझदारी से किए जाने की आवश्यकता है। दूर-दूर तक रिश्तों की छानबिन किए जाने की जरूरत है। जब दोनों ही पक्ष सभी तरह से संतुष्ट हो जाते हैं तभी इस विवाह को किए जाने के लिए शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। इसके बाद वैदिक पंडितों के माध्यम से विशेष व्यवस्था, देवी पूजा, वर वरण तिलक, हरिद्रालेप, द्वार पूजा, मंगलाष्टकं, हस्तपीतकरण, मर्यादाकरण, पाणिग्रहण, ग्रंथिबन्धन, प्रतिज्ञाएं, प्रायश्चित, शिलारोहण, सप्तपदी, शपथ आश्‍वासन आदि रीतियों को पूर्ण किया जाता है।

 
लिव इन रिलेशनशिप : आधुनिकता के नाम पर 'लिव इन रिलेशनशिप' जैसे निषेध विवाह को बढ़ावा देना देश और धर्म के विरुद्ध ही है। इस तरह के विवाह कुल के नाश और देश के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं। इसे आप गंधर्व, राक्षस और पैशाच विवाह की श्रेणी में रख सकते हैं। कुछ पशु या पक्षु रहते हैं इस तरह के विवाह में। यह कुछ समय का विवाह है। आकर्षण खत्म तो विवाह भी खत्म।

आज विवाह वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं। रंग, रूप एवं वेष-विन्यास के आकर्षण को पति-पत्नि के चुनाव में प्रधानता दी जाने लगी है। इसी के साथ दहेज प्रथा ने भी विवाह को प्रभावित किया है। इसकी के साथ फिल्मी प्रेम से भी विवाह खंडित हुआ है। इसी के चलते अब लड़की या लड़के के विवाह संबंध में अब माता पिता की भूमिका को लगभग खत्म कर दिया जाने लगा है। ऐसे में लिव इन जैसे संबंध में प्रचलन में आने लगे हैं, जो कि लड़के के नहीं लेकिन लड़की के जीवन को हमेशा के लिए बर्बाद करके रख दे रहे हैं। यह बात लड़की को भले ही अभी समझ में न आ रही हो, क्योंकि यह दौर ही ऐसा चल रहा है।

अब प्रेम विवाह और लीव इन रिलेशन पनपने लगे हैं जिनका अंजाम भी बुरा ही सिद्ध होता हुआ दिखाई दे रहा है। विवाह संस्कार अब एक समझौता, बंधन और वैध व्याभिचार ही रह गया है जिसका परिणाम तलाक, हत्या या आत्महत्या के रूप में सामने देखने को मिलता है। वर के माता पिता को अपने ही घर से बेदखल किए जाने के किस्से भी आम हो चले हैं।