अहमदाबाद: भारत को संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज जन्म जयंती है। मध्य प्रदेश के महू के एक गांव में जन्में भीमराव अंबेडकर का गुजरात के वडोदरा से खास कनेक्शन है। इसकी पहली वजह है कि बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय से उनका जुड़ाव। उन्होंने बाबा साहेब को विदेश में पढ़ने में मदद की थी। विदेश जाने से पहले उन्होंने महाराजा को लिखे पत्र में वचन दिया था कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे यहां आकर काम करेंगे। ऐसा हुआ भी बाबा साहब ने अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन में स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद जब वे भारत आए, तो उन्होंने सबसे पहले बड़ौदा में काम करने का फैसला किया।

छोड़नी पड़ी थी धर्मशाला

जब वह अमेरिका और यूरोप में पांच साल बाद जब बाबा साहब बड़ौदा पहुंचे तो उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यही था कि वे कहां रहेंगे? काफी मशक्कत के बाद उन्होंने एक पारसी धर्मशाला में रहने का फैसला किया। बाबा साहब की किताब वेटिंग फॉर वीजा पुस्तक के अनुसार वह 11 दिन ही बड़ौदा में रह पाए थे। इतने ही दिन उन्होंने बड़ौदा के महाराजा के लिए काम किया। पारसी विश्राम गृह में भीमराव अंबेडकर की जाति के बारे में लोगों को पता चला तो वे धर्मशाल के बाहर जमा हो गए। वे सभी हाथ में लाठी लिए हुए थे। लोगों ने कहा कि यह स्थान अपवित्र हो गया है। बाबा साहब को कहा गया कि शाम तक खाली कर चले जाओ। आखिर में उन्हें धर्मशाला छोड़नी पड़ी।

कमाटीबाग में बैठकर रोए थे अंबेडकर

भीमराव अंबेडकर बड़ी मुसीबत में पड़ गए, उन्होंने बड़ौदा में ही एक सरकारी बंगला लेने की सोची लेकिन उससे 'अछूत' की समस्या खत्म नहीं हुई। बड़ौदा में उनके दो मित्र थे, एक हिन्दू और एक ईसाई, यद्यपि वे यहां भी विभिन्न कारणों से नहीं जा सके, जिनका विवरण पुस्तक में दिया गया है। अंत में उन्होंने मुंबई वापस जाने का फैसला किया। ट्रेन बड़ौदा से मुंबई के लिए रात 9 बजे थी। तब तक कहां समय व्यतीत करें? कई सवालों के बवंडर के बीच, बाबा साहब ने बाकी के पांच घंटे कमाटीबाग नामक बगीचे में बिताने का फैसला किया।

संकल्प भूमि कहलाती है यह जगह

आगे चलकर देश को संविधान देने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़ी यह जगह आज संकल्प भूमि कहलाती है। वेटिंग फॉर वीजा में लिखा है कि भीमराव अंबेडकर कई उम्मीदें लेकर बड़ौदा आए थे। उन्होंने बड़ौदा में काम करने की कई बड़े ऑफर ठुकरा दिए थे। जातिवाद की वजह से उन्हें पहली नौकरी महज 11 दिनों में ही नौकरी छोड़नी पड़ी। भीमराव अंबेडकर जिस पेड़ के नीचे बैठकर रोए थे। अब यह जगह संकल्प भूमि कहलाती है। बरगद को वह पुरान पेड़ तो नहीं है लेकिन उसी पेड़ की टहनी से नया पेड़ उसी स्थान पर लगाया है। हर साल अंबेडकर जंयती और दूसरे मौकों पर लोग यहां पहुंचते हैं। कहते हैं कि जातिवाद और छुआछूत को मिटाने के भीमराव अंबेडकर ने यहीं पर संकल्प लिए थे। बाद में जब उन्हें संविधान बनाने का मौका मिला तो उन्होंने कानूनी प्रावधान किए।