नई दिल्ली । चुनावी जंग को  80 बनाम 20 या यूं कहें ध्रुवीकरण में बदलने से रोकने के लिए अखिलेश यादव अब खामोशी से रणनीति बदल रहे हैं। वह  पार्टी के अधिकांश मुखर मुस्लिम नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने के बजाए पर्दे के पीछे कर रहे हैं। वह  खुद भी ऐसी सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं जहां मुस्लिम वोट बहुत कम हैं। बदले  हुए हालात में कई जगह विरोधियों का मुकाबला करने के लिए पूर्व घोषित मुस्लिम प्रत्याशियों की जगह सवर्णों को टिकट दिया जा रहा है।  भाजपा की ओर से तमाम चुनौतियों से मुकाबला करने में जुटी समाजवादी पार्टी किसी भी तरह चुनाव में वोटों का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण रोकना चाहती है। उसकी कोशिश 15 बनाम 85 करने की है। यानी पिछड़ों, दलितों मुस्लिम को अपने साथ लाकर सवर्णों में भी सेंधमारी शामिल है। सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य इसका संकेत दे चुके हैं। अलग-अलग पिछड़ी जातियों में थोड़ा-थोड़ा आधार रखने वाले नेताओं को साथ लाकर सपा ओबीसी समीकरण तैयार किया है और इसमें सावित्री बाई फुले, इंद्रजीत सरोज, केके गौतम, आर के चौधरी, मिठाई लाल भारती जैसे दलित नेताओं के जरिए दलित वोट में भी सेंधमारी की कोशिश की जा रही है। सपा मान रही है कि मुस्लिम वोटों में अधिकांश हिस्सा उसे ही मिलेगा। ऐसे में मुस्लिम प्रत्याशी उतारने का रिस्क ज्यादा नहीं लिया जाए। कैराना में तो सियासी हालात के मद्देनजर सपा के लिए नाहिद हसन मजबूत प्रत्याशी हैं लेकिन रणनीति के तहत अलग -अलग इलाकों में अलग ही बिसात बिछाई है। वहां गैरविवादित छवि वाले मुस्लिमों को मैदान में उतारा है, उनमें अधिकांश सपा के सिटिंग विधायक हैं। कांग्रेस से इमरान मसूद व विधायक मसूद अख्तर दोनों अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। इसलिए इन दोनों नेताओं को सपा ने साथ ले लिया है लेकिन चुनाव लड़ाने से सपा ने परहेज किया है। इन्हें सपा प्रत्याशियों को जिताने का जिम्मा दिया है। ताकि सहारनपुर व आसपास सपा रालोद गठबंधन के खिलाफ ध्रुवीकरण न हो पाए। आगरा में कुछ सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी के बजाए अब वैश्य व अन्य समुदाय के प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है।  सपा प्रमुख चाहते थे तो आजमगढ़ की गोपालपुर या किसी अन्य सीट से लड़ सकते थे। वह आजमगढ़ से सांसद भी हैं। सपा का व्यापक जनाधार है और यहां किसी सीट से जीतने में उन्हें बहुत मुश्किल नहीं आती। यहां गोपालगंज में सपा के नफीस अहमद जीते थे। अखिलेश के पहले यहीं से लड़ने की योजना थी लेकिन पर यह सोचा गया कि इससे भाजपा को ध्रुवीकरण कराने का मौका मिल जाएगा और पूर्वांचल की अन्य सीटों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए यादव बेल्ट की करहल को चुना जहां केवल पांच प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं।